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जो पूर्वाभिमुख और भव्य शिखरवाला है । यह धरण - विहार के सामने एक फर्लांग के अन्तर पर एवं नकशीदार है । इसको धन्नाशाह के एक मित्रने बनवाया है । किसी किसी का यह भी मत है कि त्रैलोक्यदीपक मन्दिर में कामकरनेवाले किसी कारीगर ने इसको स्वयं बनवाया है । द्वितीय और तृतीय जिनालय में एक-एक भूमिगृह है - जिनमें खण्डित प्रतिमायें सुरक्षित हैं। तीसरे मन्दिर में मूलनायक की प्रतिमा श्यामवर्ण की २ फुट् ऊंची है और इसके मण्डप में ६ प्रतिमा सर्वाङ्ग सुन्दर विराजमान हैं ।
इस मन्दिर के विषय में ' मारवाड़राज्य का इतिहास ' में लिखा है कि राणकपुर के एक मन्दिरं में नंगी और अश्लील मूर्त्तियाँ खुदी हुई हैं, इससे यह कोकशास्त्र बन गया है । लोगों को इसका यथार्थ नाम नहीं मिला तो इसको पातरियों का मन्दिर कहने लगे । पृष्ठ २८७ ।
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हम इस पर विशेष तो क्या लिखें, परन्तु इससे यह प्रतीत होता है कि ' मारवाड़ - इतिहास ' के इतिहासकार को जैन - साहित्य का, विशेष कर जैनइतिहास का और जैन - शिल्पशास्त्र का ज्ञान प्राप्त
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