Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 98
________________ उन तीर में से एक भी इनके न जा तन से अड़ा। कर जोड़ उलटे नीच वह इनके पदों में गिर पड़ा।" "दौड़ा अचानक चोर इनको मारने असि ले वहीं । पर गिर पड़ा वह बीच ही में जा सका इन तक नहीं । जव चेतना आई उसे, जा पाँव में इनके गिरा । होगा न ऐसा और अब, वह यह प्रतिज्ञा कर फिरा॥" ____ जोधपुर रियासत के जालोर परगने में मोदरागाँव से पाव मील दूर सघन झाड़ीवाले चामुण्डवन में जा कर आप निर्भयता से आठ महीना तक आठ-आठ उपवासों के थोक से उघाड़े शरीर कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे । भयभीत हो किसी दुष्टने आपको मारने के लिये तीर पर तीर फेंकने शुरू किये, लेकिन आपके शरीर में एक भी तीर नहीं लगा । इस चमत्कार को देख कर वह आपके चरणों में पड़ कर क्षमा याचना करके चला गया । एक समय वहीं पर एक चोर हाथ में तलवार लेकर आपको मारने के लिये दौड़ा, पर वह मूर्छा खा कर बीच में ही गिर पड़ा, आप तक न पहुंच सका । चेतना आने पर उसने आपके चरणों में पड़कर, अपने अपराध की क्षमा मांगी और आयंदे के लिये ऐसा न करने की प्रतिज्ञा करके वह चला गया । आपकी तपस्या, आपका ध्यान और आपका आत्मबल कितना प्रबल था ? उक्त, घटना और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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