Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 96
________________ और आकांक्षा करता हूं कि इसी तरह हम आगामी वर्ष की श्रीराजेन्द्रसूरि-जयन्ती मनाने के लिये एकत्रित होकर जयन्ती नायक के विविध दृष्टिकोणों के विषय में शक्ति भर विचार करेंगे, शुभमिति । -कु० दौलतसिंहलोड़ा 'अरविन्द' जैन । ------ ----- आचार्यदेवेश का आत्मबल । आयावयंति गिम्हेसु, हेमंतेसु अवाउडा । वासासु पडिसंलीणा, संजया सुसमाहिया ॥ १२ ॥ -उन्हाले में सन्तप्त रेती या पर्वतीय शिला पर आतापना लेते हैं, सियाले में जंगल या सरस्तीर पर उधाड़े शरीर रह कर कायोत्सर्ग ध्यान करते हैं और वारिश में एक स्थान का आश्रय ले कर, इन्द्रियों को संयम में रख कर समाधि (संवर ) भाव में वरतते हैं। वेही साधु अपने संयम-धर्म को भलिभाँति विकसित एवं विशुद्ध कर पाते हैं। दशवैकालिकसूत्र, ३ अध्ययन । संसार में जो मनुष्य पर-सहाय की अपेक्षा न रख, कर अपने अटूट आत्मबल से निडर हो, परीसहोपसर्ग की कसौटी पर आरूढ़ होकर कार्य-क्षेत्र के विकृत रूप को हटा कर उसमें सत्यता का वास्तविक अंश भरना जानते और वैसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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