Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 101
________________ मुनिमंडल तथा दो चार श्रावकों के सामने प्रगट किया। आखिर आपके कथनानुसार महा भयंकर छप्पन का दुर्भिक्ष चारों ओर पड़ा। यह सब आपके विशुद्ध समाधियोग काही बल समझना चाहिये । आपकी जीवन चर्या से हम आपको भी अपने आत्मबल को समुन्नत बनाने की शिक्षा सीखना चाहिये । बस, जय बोलो गुरुश्री आचार्यदेवेश की जय । मुनिश्री वल्लभविजयजी। - --- अलौकिक-विभूति । संसार में जब चारों ओर अज्ञानावृत गम्भीर तिमिर का आभास प्रतीत होता हो, धर्म और पुण्य को खिलौना मान कर, उनका परिहास हो रहा हो, स्वेच्छाचारियों के स्वच्छन्द विहरण से जहाँ अखण्ड-पाखण्ड की अजेय पताका फहराने लगती हो, अज्ञलोग आडम्बरियों के चंगुल में फँस अपने निरवद्य, वन्द्य अनादि धर्म को पाखण्ड पर्णमयी अज्ञानता की झुरमुट में विस्मृत कर धर्म और धर्मोपदेष्टाओं पर निःसंकोच अश्रद्धा का अतुल साम्राज्य स्थापित करते हुए पारम्परिक मननीय मर्यादा एवं गुरुतम गौरव से च्युत हो रहे हों, अनुचित प्रबल दुर्भावनाओं की सुदृढ़ जड़ पूर्ण रूपेण विकसित होती हो, पारस्परिक वैमनस्यता के कारण सर्वत्र अमानुषिकता का अपनीय दुर्व्यवहार संचरित होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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