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वर्णन से अच्छी तरह जाना जा सकता हैं । क्या वर्तमान आचार्यों में ऐसा आत्मबल या तपस्तेज विद्यमान है ? इसका उत्तर नहीं के सिवा और कुछ नहीं है।
इस प्रकार की उत्कृष्ट आध्यात्मिक साधना और नैत्यिक पद्मासन समाधियोग में आपको होनेवाली घटनाओं का वास्तविक साक्षात्कार हो जाता था-जिनकी सत्यता आपकी कही हुई निम्नोक्त घटनाओं से मालूम हो सकती है ।
(१) सं० १९३९ में आप कुकशी में विराजमान थे, रात्रि के समय ध्यानचर्या में आपको कुकुशी दाह का पता लगा। प्रातःकाल मुखिया श्रावक वन्दन के लिये आये, तब आपने उनसे कहा कि आज से उन्नीसवें दिन कुक्शी में आग लगेगी, वह प्रयत्न करने पर भी काबू में नहीं आवेगी । बस, ठीक उन्नीसवें दिन चारों ओर एक साथ आग लगी और देखते देखते सारी कुक्शी खाक हो गई। इस अनलप्रकोप में १५०० घर, ३० आदमी, ४ स्त्रियाँ और १०० पशु जल गये । सब मिला कर सवा करोड़ रुपयों का नुकशान हुआ था। जो लोग गुरुवचन के विश्वास पर पहले ही चेत गये थे वे जान-माल से सब तरह आबाद रहे ।
(२) सं० १९४१ में आत्माराम ( विजयानन्दसूरि) अहमदावाद के झबेरीवाड़े के मन्दिर की प्रतिष्ठा करा रहे थे। आप पांजरापोल के उपाश्रय में विराजमान थे । कुछ
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