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, सर्वत्र अभिज्ञता, आध्यात्मिकता का संचार हो गया और वैज्ञानिकता एवं सदभावुकता का क्षेत्र विशाल बन गया। सारांश यह है कि इस अलौकिक विभूति का प्रभावसम्पन्न प्रादुर्भाव होते ही सर्वत्र प्रकाश हो गया, उस प्रकाश पुञ्ज में प्रायः सभी आलोकित-प्रकाशित हो उठे थे, फिर भी इस विभूति की अभूतपूर्व आभा का अतिशय प्रभाव जैनजगत जैनममाज पर खूब पड़ा। जैनजगत में सर्वत्र मनो. मुग्धता छा गई । न केवल भारतवर्ष में ही, अपितु विदेशों में भी इस विभूति की विशेषरूपेण ख्याति है व चिरकाल पर्यन्त रहेगी। ___ इस ख्याति का प्रधान कारण है, इसी विभूति (विजयराजेन्द्रसूरीश्वर ) के द्वारा अथाह श्रमेण निर्मित ' अभिधानराजेन्द्र 'कोष । इस विराट्र जैन विश्वकोष में आपने अपने अलौकिक पाण्डित्य का पूर्ण परिचय प्रदान किया है। अस्तु, इसका विशेष उल्लेख करना सूर्य के सम्मुख प्रकाश करना है, फिर भी कोशान्तर्गत प्रखर पाण्डित्य, बौद्धिक पाटव, विलक्षण वैदुष्य का सम्यक्-तया निरीक्षण कर किस विज्ञ महानुभाव के मुख से निम्नाङ्कित वाक्य न निकलेंगे। कोश का समालोचक अवलोकन करते ही कह उठेगा कियावद भारतवर्षः स्याद, यावच्चन्द्रदिवाकरो। तावद राजेन्द्रकोशः स्याद, राजेन्द्रेण विनिर्मितः।।
यह कोश आपकी एक अलौकिक, अभूतपूर्व अमरकृति
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