Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 94
________________ साहित्य सेवाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए विषय को समाप्त करने का प्रयत्न करेंगे। ऊपर स्थल-स्थल पर सूरिजी के गम्भीर पाण्डित्य की ओर संकेत मात्र किया गया है, परन्तु उसके प्रबल प्रमाण देने की चेष्टा अब तक नहीं की और निबन्धविधान से ऐसा करना ठीक भी था । अब थोड़े में आचार्यदेव के बनाये हुए 'अभिधान राजेन्द्र' कोप की ओर जिसके सात भाग हैं, श्रोतागणों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं और साथ ही यह पूछने की धृष्टता करता हूं कि क्या उक्त कोष का आज सम्मान साहित्य-संसार में, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में, विज्ञान संसृति में किसी धार्मिक राजनैतिक, विज्ञान शास्त्र से कम है ? क्या जापान, जर्मन, अमेरिका, इंगलेण्ड के पुस्तकालय, सभा-सोसाइटियों की अलमारिये इस कोष से नहीं सजी हैं ? क्या समस्त जैन शास्त्रसूत्रों का इसमें संग्रह नहीं है ? । मूरिवर्य की पाण्डित्यशक्ति कितनी थी ?, प्राकृत-संस्कृत में उनकी कितनी गम्भीरता थी ?, इन भाषाओं पर उनका कितना अधिकार था ?, इन सब प्रश्नों का उत्तर एक यह अभिधान-राजेन्द्र ही दे सकेगा । वैसे आचार्यदेव के रचे हुए ग्रन्थों की संख्या ५२ से भी ऊपर है। अभी तक अधिकांश इनमें अप्रकाशित हैं। इनकी साहित्य सेवायें चिर-स्मरणीय रहेंगी। जब तक दिग-दिगन्त में प्रकाश रहेगा, मूरिजी का साहित्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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