Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 79
________________ होकर कण-कण हो गई। फिर सौहार्द, प्रेम, मानवता क्या वस्तु है ? विस्मृत हो गये । शनैः-शनैः प्रतिस्पर्द्धा का रूप विकशित होता ही गया । उसके विषाक्त शरों की उडाने होने लगीं । लक्ष्य स्थिर होने लगे । स्वार्थ भर निन्द्यव्यवहार, जघन्य नरसंहार के दृश्य साम्राज्यवाद-पूंजीवाद की पृष्ठभूमि पर सवाक् चल-चित्र से उतरने लगे। भारत का पारतत्र्य, आफ्रीका आदि प्रदेशों की वर्तमान दयनीय दुर्दशा, चीन जापान के भयङ्कर रण यूरोप के महारण ये सब इसी प्रतिस्पर्धा के ही तो विकशित रूप हैं। परन्तु भारत पर इन विषाक्त स्वर्णिम रश्मियों का प्रभाव सचोट न पड़ सका, इसका सैद्धान्तिक कारण है। आज भी यहाँ आध्यात्मिकता की, मानवता की, सौजन्यता की, सद्भाबुकता की किसी न किसी रूप में पूजा-प्रतिष्ठा है। पाश्चात्य प्रदेशों में हुए ये नाट्य-कौतुक अभी भारत को अपनी रंगशाल न बना सके और इसी वेष रूप से वे कभी न बना सकेंगे। भारतीय सुसंस्कृत संस्कृति अपने अनादिकाल से ही अपने अनुकूल लेखक, कवि, सुधारक, प्रचारक, महात्मा उत्पन्न करती रहती है जो उसके सैद्धान्तिक-नैतिक जीवन की रक्षा करते हुए उसे अधिकाधिक पुष्पित, पल्लवित, चिरदृढ, परिष्कृत करते रहते हैं। वर्तमान देशनेता ऐसी ही विभूतियों में से हैं जिनका अवतरण मात्र देश, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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