Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 91
________________ आपके त्याग, आत्मबल की शुभकीर्ति दिनमणि की प्रातः किरणों के सदृश मानव-समाज पर बिछसी गई । आपका अब चैतन्य-पुरुष अर्थात् अन्तरात्मा पूर्ण-विकशित, पूर्णजागृत हो उठा । समय के परिवर्तन से जो दूषित वायु आच्छन्न हो गया था उसे हटाने के लिये आपका चैतन्यपुरुष कटिबद्ध हो गया। घात-प्रतिघात सहन करते हुए आप धर्म का प्रसार करने लगे। ग्राम, नगर, पुर विहार करते हुए व्याख्यानादि देने लगे, परन्तु श्रोतागणों ! आप अच्छी तरह जानते हैं कि यह युग वक्तव्य का नहीं वरन् रचनात्मक कार्यों का है। हमारे जयन्ती-नायकने युग की आवश्यकता को भली प्रकार समझा था । अपना जीवन वे आदर्श बनाते हुए उपदेश देते थे, अतः उनके व्यक्तित्व का प्रभाव भी सचोट पड़ता था। उनकी तपःशक्ति पर जब हम विचार करने लगते हैं तो आश्चर्यान्वित हुए विना नहीं रहा जाता । जंगल, उपवन, पहाड़, मरुस्थली सब आपके तपःस्थल बन गये थे । हड़कम्प शर्दी हो, चाहे अनन्त तुषार युक्त हो, चाहे दिगन्त प्रसरित कोहरा व्याप्त हो, चमकती धूप हो, चाहे भस्मसात् करनेवाली लपटें उठती हों, कुछ भी हो बीहड़ वन हो, उपवन हो, ग्राम पार्श्व-कक्ष हो, चाहे निर्जन अनीर बालुकामय स्थल हो, जहाँ इनके चैतन्य-पुरुष का आन्तर बोल उठा, वहीं तप के अखाड़े लग गये । कुछ ही समय में आपकी तपःशक्ति का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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