Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 90
________________ गच्छ को कलंकित करनेवाला है । मुझे इस श्रीपूज्यपद की न अभीप्सा है और न आकांक्षा । अगर धरणेन्द्रसरिजी मेरी निश्चित की हुई नव समाचारी कलमें स्वीकार कर उनके अनुसार चलने को तैयार हों तो मैं सहर्ष उनसे इस विषय में मिलना चाहूँगा। ____ जब धरणेन्द्रसूरिजीने नव कलमें स्वीकार कर प्रमाणित कर ली, तब श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी को अपनी सफलता पर अपार आनन्द हुआ और समस्त श्रीसंघने भी हर्ष मनाया। स्थानाभाव से हम यहाँ पर नव कलमों के विषय में कुछ न कहते हुए आगे बढ़ेंगे। धरणेन्द्रसूरिजी की ये प्रमाणित नव कलमें आहोर के ज्ञानभण्डार में यथावत् विद्यमान हैं। यदि कोई महानुभाव देखना चाहे तो वहाँ जा कर देख सकता है। विशेष आश्चर्य तो यह है कि श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीने पांच वर्ष का अभिग्रह धारण किया था वह भी इस प्रकार पूर्ण सफल होकर समाप्त हो गया ! अब आपने सकल श्रीसंघ के समक्ष इस राजसी श्रीपूज्यपद का परि. त्याग कर संसार वर्द्धक सर्वोपाधियों से बन्धन-मुक्त हो कर पंच महाव्रत स्वरूप मुनिपद स्वीकार किया। इस क्रियोद्धार का जैन समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा । अखिल भारतवर्षीय जैनसमाज में इस महात्याग से लहरसी आ गई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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