Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 70
________________ ६१ उपनद (खार) मिलता है । इसके चढ़ाव पर एक प्राचीन दुर्ग है, उसकी सिंह- दिवारों पर 'महाभय, महाभय ' शब्द लिखे हुये हैं और है भी यह दुर्ग ऐसा ही । इससे राणकपुर स्थान की भयंकरता का भी अनुमान लगाया जा सकता है । इस दुर्ग से ७ मील दक्षिण-पूर्व में मेवाड़ का सायरा ग्राम आया है। इस तीर्थ स्थान पर तीन जिनालय हैं - जिनमें से धरणविहार (त्रैलोक्यदीपक ) नामक जिमालय जिसके हेतु ही यह तीर्थ इतना प्रसिद्ध है, देखने में महान् शिल्पकला की दृष्टि में अनन्य है । हमको इतना तो अवकाश नहीं मिला कि जो हम नीचे लिख रहे हैं वह सब हम वहाँ अनुभव करते और फिर लिखते । लेकिन यहाँ हम श्रीसमयसुन्दरजी के लिखे हुए एक स्तवन के आधार पर जो उन्होंने अपनी तीर्थयात्रा के समय सं० १७१५ में बनाया था, कुछ यहाँ लिख देते हैं । त्रैलोक्यदीपक मन्दिर में ७२ देवालय हैं, एक अष्टापद शिखर है, २४ मंडप हैं, एक शत्रुंजय - शिखर है, १०० तोरण हैं, स्तम्भ दो हजार हैं जिन पर नाटक करती हुईं ५५२ पुत्तलिकायें हैं और कुल प्रतिमायें ४००० विराजमान हैं। पंचतीर्थी, समवसरण एवं नन्दीश्वरद्वीप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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