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बढ़नेवाले प्रत्येक कर्म - कार्य में यह प्रभाव रहता ही है और इसीका नाम विकाश या उन्नति है । यवन - यौन- मुगल- शिल्प-कलायें पहिले की कलाओं से कई शताब्दियों पीछे की हैं, अतः ये कलायें जैन, बौद्ध, वैदिक शिल्पकलाओं से प्रभावान्वित होअधिक या कुछ अंशों में कोई विस्मय-पूर्ण नहीं । इतिहासकार यह भी मान चुके हैं कि बौद्धधर्म जैन एवं वैदिक धर्म के पश्चात् संभूत हुआ है । तब भला जैन एवं वैदिक शिल्प-कलाओं से पूर्व बौद्धशिल्पकला का अस्तित्व कैसे स्वीकार किया जा सकता है ?, अब रही जैन एवं वैदिक शिल्पकलायें, सो इनका भूत अनन्त है । कौन धर्म इन दोनों में से पूर्व का है अब तक निर्णय रूप से नहीं कहा गया । इसलिये हम भी यहाँ यह नहीं कह सकते कि इन दोनों में से कौनसी कला प्रथम दूसरी कला के अस्तित्व से प्रभावान्वित हुई । लेकिन इतना स्पष्ट है कि एक दूसरी को इन्होंने पर्याप्त अंशों में आदान-प्रदान किया है, या यों कह दिया जाय तो भी अत्युक्ति नहीं हो सकती कि कुछ अंशों को छोड़ कर जैन एवं सनातन वैदिक-कलायें एक ही हैं । भारतवर्ष में प्रत्येक शिल्पकला धर्मस्थानों में, स्मारकों में, स्तूपों में, गुफाओं में एवं शिलालेखों
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