Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 17
________________ उससे एक ओर कार्य लिये जाने का ध्येय विशेष या प्रधान रहा है जो अन्यत्र देशों के धर्मस्थानों में देश-काल-स्थिति के प्रभाव से ही भले थोड़ा बहुत अंशों में स्पर्श कर सका है। वह ध्येय है वैभव, सामाजिक-स्थिति, सभ्यता, गौरव, उत्थान, उच्चता और इष्ट के प्रति अपार भक्ति, श्रद्धा इन धर्म-स्थानों के शरीरों के प्रति रोम-रोम से उद्भाषित हो । सर्व-प्रधान ध्येय था ये धर्म स्थान साथ में ही शिल्पकला के अनन्यतम उदाहरण एवं आदर्श हों। जितना द्रव्य भारतवर्षने अपने इन तीर्थस्थानों में व्यय किया है उतना द्रव्य तो क्या उसका सहस्रांश भी किसी देशने व्यय नहीं किया। मुहम्मद गजनवी के आक्रमणों का मुख्य ध्येय इन स्थानों से द्रव्य अपहरण कर गजनी को सम्पन्न एवं समृद्ध बनाने का था। अन्य मुसलमान आक्रमणकारियों का भी यह ध्येय प्रधान या गौण रूप से सदा रहा है और इन तीर्थस्थानों से अपार धनराशि वे ले गये हैं जिसका इतिहास साक्षी है। भारत धर्म के पीछे लुब्ध रहा है, इसने अपने धर्मस्थानों को सर्वस्व भेट किया है । भला फिर वे धर्मस्थान कैसे गौण या दीन रह सकते हैं । जैनसमाजने अपेक्षाकृत धर्म-स्थानों को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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