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ऐसी ही। इस पर चढ़ने के लिये नीचे से मन्दिर तक पक्की सीढ़ियें बनी हुई हैं । मन्दिर के चतुर्दिक एक छोटासा दुर्ग है जो अब भग्नावस्था में है। इसके भीतर एक जलकुण्ड भी है जिसकी भी वही अवदशा है । मन्दिर की चार दिवारी अच्छी स्थिति में है । मूलनायक भगवान् श्रीआदिनाथस्वामी की प्रतिमा १३ हाथ बड़ी है और अति मनोहारिणी है । इसके दर्शन पूजन करने से सिद्धाचल के समान ही शान्तिलाभ प्राप्त होता है । इसकी प्राणप्रतिष्ठा महाराणा जगतसिंहजी के राज्यकाल में सं० १६८६ वैशाख सुदि ८ शनिवार के दिन जहाँगीर महातपा-विरुदधारक श्रीविजयदेवमूरिजी के कर-कमलों से हुई है।
१० वां जिनालय एक छोटी पहाड़ी पर है जो शिखरबद्ध और ग्राम से दक्षिणोत्तर दिशा में थोड़ी दूरी पर है। इसमें भगवान् श्रीनेमिनाथस्वामी की श्यामवर्ण, सपरिकर एवं १३ हाथ बड़ी सर्वाङ्गसुन्दर प्रतिमा मूलनायक रूप में विराजमान है। इसी कारण इसका नाम गिरनारटोंक और यादव (जादवा) पहाड़ी है। संवत् १६०७-८ में विजयहीरसूरि को पंन्यास और उपाध्याय पद इसी मन्दिर में दिये गये थे। सं० ११९५ आश्विन कृष्णा
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