Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 60
________________ ५३ वीर - वेश धारण किये हुए शोभित हो रहे हैं । तुरन्त वायुवेग से यह संवाद महाराणा तक भी जा पहुँचा और सब ही भगवान् के इस रूप में दर्शन कर बड़े आनन्दित तथा विस्मयान्वित हुये । परन्तु जो होनी होती है सो हो कर ही रहती है । महाराणा के किसी कर्मचारी को यह शंका हुई कि कहीं मूछ चिपकाई हुई तो नहीं है ?, उसने धृष्टता पूर्वक प्रभु की मूछ का एक बाल उखेड़ा | बाल के | उखड़ते ही दूध की धारा बह चली । इस पर उस नराधम को बड़ी लज्जा आई और महाराणा को भी बड़ा पश्चात्ताप हुआ, पर अब क्या हो सकता था । पूजारीने उस धृष्ट को यह शाप दिया कि तेरे कुल में सात पीढ़ी तक निर्मूछ पुरुष उत्पन्न होंगे । " कुछ भी हो, कार्य के पूर्व कारण का या कभीकभी साथ भाव का होना तो अनिवार्य है ही । अगर यह प्रसंग जो हमने उपयुक्त समझा, संभव है अन्य को उपयुक्त प्रतीत न हो, लेकिन यह तो निश्चित ही है कि मुछाला नाम पड़ने के लिये कुछ इसी प्रकार का प्रसंग बना होगा । भगवान् की मूर्त्ति बड़ी विशाल, एवं पौने पांच हाथ ऊंची है । मूर्ति अधिक प्राचीन होने से विकलाङ्ग हो गई है । दोनों हाथों के मणिबन्ध के नीचे के भाग तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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