Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 66
________________ निकले बिना रह नहीं सकता तथा इसका प्रत्येक छोटा बड़ा भाग अपनी अपनी अलग विशेषता लिये हुये हैं । ऐसा शिल्प-कला का साकार प्रति. बिम्ब भारत में क्या दुनिया के किसी भी भूभाग पर मिलना दुर्लभ्य है। हमारे चर्च भी विस्तृत क्षेत्र को घेर कर बनाये जाते हैं तथा चौँ का आकाशचुम्बी होना तो एक धर्म समझ लिया गया है, परन्तु जब इस मन्दिर की विशालता तथा इसके ऊँचेपन को निहारता हूँ तो हमारे चर्च इसकी समता में बहुत नीचे रह जाते हैं।” मेह कविने इस तीर्थ की यात्रा करते समय सं० १४९९ में एक स्तवन बनाया है, उसमें लिखा है कि " श्रेष्ठि धन्नाशाहने देपाक नामक शिल्प-कला विशारद की निरीक्षणता में लगभग ५० शिल्पकारों एवं अन्य कतिपय शिल्पविज्ञों को रख कर उक्त मन्दिर बनवाया। इसके निर्माण में एक कोटी द्रव्य से भी अधिक खर्च हुआ है। इस मन्दिर के निर्माण के साथ-साथ धन्नाशाहने अजारी में, पिंडवाड़ा में और सालेर ग्राम में भी सौधशिखरी जिनालय बनवाये।" ज्ञानविजयजी लिखित 'जैनतीर्थनो इतिहास' में लिखा है कि "धरणशाहने १४४४ स्तम्भवाला नकशीदार नलिनीगुल्मविमान के समान २० रंग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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