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३० को यहाँ के ठाकुर राजदेवने बालदियों से प्राप्त होनेवाले कर का। वां भाग इस मन्दिर को अर्पण किया था ऐसा यहाँ के एक शिला-लेख से प्रगट होता है।
११ वां जिनालय सहसावन के नाम से प्रख्यात है जो जादवापहाड़ी से ४ फाग की दूरी पर एक पार्वतीय उपत्यका में स्थित है। इसमें नेमिनाथप्रभु के चरणविम्ब संस्थापित हैं। ये पादबिम्ब नये स्थापन किये गये हैं । इस स्थान पर विशेष झाड़ी नहीं है, किन्तु मार्ग चढ़ाव-उतारवाला जरा विषम है। श्रीसुमेर (सोमेश्वर ) तीर्थ
पंचमी को संघ का पड़ाव 'सोमेश्वर' हुआ। वर्त
१ ॐ नमः सर्वज्ञाय । संवत् ११९५ आसउजवदि १५ दिने कुजे अद्येह श्रीनाडूलडागिकायां महाराजाधिराज श्रीरायपालदेवे विजयीराज्यं कुर्वतीत्येतस्मिन् काले श्रीमदुजिततीर्थे श्रीनेमिनाथदेवस्य दीपधूपनैवेद्यपुष्पपूजाद्यर्थे गुहिलान्वयः राउ० ऊधरणसूनुना भोक्तरि ठ० राजदेवेन स्वपुण्यार्थे स्वीयादानमध्यात् मार्गे गच्छतानामागतानां वृषभानां शेकेषु यदाभाव्यं भवति तन्मध्याविंशतिमो भागः चन्द्रार्क यावद्देवस्य प्रदत्तः । अस्मद्वंशीयेनान्येन वा केनापि परिपंथना न करणीया, अस्मइत्तं न केनापि लोपनीयम् ।
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