Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 56
________________ हुआ । देसूरीसंघने बड़ी सज-धज से आगत संघ का स्वागत किया। यहाँ पर संघ का पड़ाव ६-७-८ तक तीन रोज रहा । स्थानीय संघ और संघपति के तरफ से नवकारसियाँ हुई, एवं मन्दिरों में पूजायें भणाई गई। नगर के चतुर्दिक् दृढ़ शहरपना है । नगर में ओसवाल एवं पोरवाल जैनों के लग-भग २०० घर हैं। नगर में चार उपाश्रय, एक विशाल धर्मशाला, एवं चार जिनालय हैं। दो जिनालयों की देखभाल ओसवाल तथा दो की सार संभाल पोरवाल जैन करते हैं। १ प्रथम मन्दिर शिखरबद्ध है, उसमें श्रीशान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा १ हाथ बड़ी श्वेतवर्ण है। मन्दिर में कुल प्रतिमायें ७ हैं। एक पंचलीर्थी तथा एक चौवीसी भी है। २ द्वितीय शिखरबद्ध-मन्दिर में श्रीऋषभदेवप्रभु की प्रतिमा १४ हाथ ऊंची है और इसके अगलबगल में प्रभुपार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित हैं । इसमें कुल ४ प्रतिमा, चार पंचतीर्थी तथा दो चौवीसी हैं। ___३ तृतीय मन्दिर में चोमुख छत्री है जिसमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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