Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 52
________________ ४५ प्रतिमा सं० १७४९ की प्रतिष्ठित है जो एक हाथ ऊँची एवं बादामी वर्ण की है। इसके अलावा एक श्रीमहावीरप्रभु की प्रतिमा और भी है जो उक्त संवत् में ही प्रतिष्ठित हुई है। इनके अंजनशलाकाकार अंचलगच्छीय आचार्य श्रीधर्मसूरिजी हैं । यह जिनालय शिखरबद्ध एवं अच्छा मोहक है । ७ वां जिनालय शिखरबद्ध है, इसमें मूलनायक गोड़ीपार्श्वनाथप्रभु की सर्वाङ्ग - सुन्दर, श्वेतवर्ण १ हाथ बड़ी प्रतिमा स्थापित है जिसकी प्राणप्रतिष्ठा सं० १७६७ में श्रीकुशलसूरिजी के हाथ से हुई है । इसके आस-पास श्रीपार्श्वनाथ और श्रीऋषभदेव भगवान् की भव्य दो प्रतिमा विराजमान हैं जिनकी अंजनशलाका सं० १३२४ में श्रीविजयरत्नसूरिजीने की है । ८ वें सशिखर - जिनालय में मूलनायक भगवान् श्रीपार्श्वनाथस्वामी की सपरिकर, श्वेतवर्ण, एवं १३ हाथ बड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित है । प्रतिमा की मनोहारिता दर्शनीय है । ९ वां श्री सिद्धाचल - सशिखर जिनालय जेबलपहाड़ पर स्थित है । यह सम्राट् - संप्रति का बनवाया कहा जाता है और इसकी बनावट है भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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