Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 30
________________ का, विस्तार का, उदारता का, प्रौढता एवं समृद्धता का परिचय पाते हुए के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक-स्थिति का भी पता लगा लीजिये । आज भी आबू का जैनमन्दिर विमलशाह एवं वस्तुपाल तेजपाल के स्वधन्य नामों को मुक्ताक्षरों में प्रगट कर रहा है, इतिहास के पृष्ठों की बात तो अन्यत्र रही । श्रीसंघों के निष्क्रमण ऐतिहासिक हैं, केवल कथात्मक एवं कल्पनात्मक नहीं। इनके वर्णनों से हमें भूत का गौरव, प्रतिष्ठापन एवं संपन्नता को जानने में बड़ा सहयोग मिलता है । स्थानाभाव के कारण अब इसको इतना ही पर्याप्त समझना चाहिये। ६ जैनधर्म की दृष्टि से मरुस्थल का महत्व___ वैसे तो भारत के सम्पूर्ण शरीर के रोम-रोम में जैनत्व एवं जैनधर्म के तत्व समाये हुए हैं । कहीं आगे, कहीं पीछे और कहीं एक साथ। उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त, युक्त प्रदेश, पंजाब भगवान् पार्श्वनाथस्वामी के मुख्य-कार्य-क्षेत्र रहे हैं । बंगाल, विहार, उड़ीसा, युक्तप्रदेश ये भगवान् महावीरस्वामी के मुख्य विहार-स्थल थे। पूर्व के तीर्थङ्करोंने सर्व भारत के प्रत्येक अङ्ग वङ्ग को स्पर्श-दान दिया है । परन्तु आज दुःख के साथ कहना पड़ता है कि अतिरिक्त मालवा, यू.पी., गुजरात, सौराष्ट्र एवं राजपूताने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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