Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 48
________________ ४१ पर्वत अपूर्व शोभा को धारण कर रहा है। बस, यह तो मानना ही होगा कि यह नगरी अति प्राचीन है। भूगर्भ से निकलनेवाली प्रतिमाओं एवं खण्डहरों से भी इस नगर की प्राचीनता सिद्ध होती है। सोनगिरा सरदारों की राजधानी बनने का भी इसे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इनका उस समय का बना हुआ किला भी खंडहर रूप में विद्यमान है। आज भी इस नगर की प्राचीनता एवं जाज्वल्यता इसकी मन्दिरावली से स्पष्ट दृष्टिगत होती है । आज यहाँ जैनों के अति-वल्प घर रह गये हैं, फिर भी इसकी महत्ता कम नहीं है। थोड़ा वर्णन यहाँ हम प्रायः सभी जिनालयों का देंगे, जो परिचय के लिये काफी होगा। १ नगर के पश्चिमी द्वार के बाहर भगवान् आदिनाथ का बड़ा एवं सौधशिखरी जिनालय है। पहिले इसमें महावीरस्वामी और बाद में मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित थी, परन्तु उसके लुप्त हो जाने से वर्तमान प्रतिमा भगवान् आदिनाथ की विराजमान की गई। यह सब परिकर के लेख से प्रकट होता है। वर्तमान प्रतिमा श्वेतवर्ण की है और तीन फुट ऊँची है । इसके अतिरिक्त ग्यारह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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