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जो विक्रमाब्द १९९९ में हमने भूति (मारवाड) से शा. देवीचन्द रामाजी के तरफ से निकले हुए श्रीसंघ के साथ में की थी, अनेक शिलालेखों के उद्धरणों से, ऐतिहासिक प्रमाणों से, तथा अपनी आखों देखी जैन-मन्दिरों की शिल्पकला के प्रतीकों से तथा जैनमन्दिरों की प्राचीनता से करेंगे।
गोड़वाड़-प्रान्त इस समय दो भागों में विभक्त है । एक देसूरी परगना और दूसरा बाली परगना । इतिहास के पृष्ठों के अनुसार इस प्रान्त पर सर्व प्रथम चौहानों का तथा उसके पश्चात् सोलंकियों का और तत्पश्चात् उदयपुर के महाराणाओं का आधिपत्य रहा है। संवत् १८२६ में यह प्रान्त महाराजा विजयसिंहजी के अधिकार में आया । उस समय से अब तक यह उन्हीं के वंशजों के अधिकार में है। देसूरी यह हकूमत का कस्बा है। जोधपुर से यह ८४ मील के अन्तर पर सूकड़ीनदी के किनारे एक पार्वतीय उपत्यका में अवस्थित है । वर्षा-ऋतु में इस नगर की मनोहारिणी छटा अवलोकनीय है। नये ढंग के बने हुए भवनों के वाससे इसकी शोभा और भी अधिक बढ़ गई है। इस परगने का क्षेत्रफल ७१० वर्गमील है।
बाली यह भी रमणीय नगर है। जोधपुर से दक्षिण में आया है। चौहानों के समय में इसकी राजShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com