Book Title: Meri Golwad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Devchandji Pukhrajji Sanghvi

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Page 25
________________ अपाहिजों की सहायता करना, धर्मशालाओं में, धर्मस्थानों में, उनके स्थायित्व के निमित्त धन देना, याचकों की याचना यथाशक्ति पूर्ण करना. विद्यालयों में हितकारी समितियों में, चिकित्सालयों में, दैशिक अदैशिक सभाओं में ध्येय व जीवन संसार के कल्याणार्थ हो द्रव्य-दान करना, आदि. अनेक उपकार के कार्य करना श्रीसंघ के कर्तव्यों में सम्मिलित हैं। फिर भला इस अवसर से बढ़ कर लक्ष्मी के सदुपयोग करने का कौनसा अवसर उत्तम हो सकता है ?। जैनधर्म का ही विस्तार क्या, सभी धर्मों के विस्तार इसी प्रकार के आयोजनों से, सम्मेलनों से होते आये हैं। हम देखते हैं कि प्रतिवर्ष वैष्णव, सनातन, बौद्ध, आर्यसमाज, ईसाई, पारसी, यहूदी मुसलमान सब के संघ एकत्रित होते हैं और धर्मोनति करना यह सब ही का प्रमुख प्रस्ताव रहता है । इसके साथ ही अन्य भी हितकर प्रस्ताव रहते हैं, परन्तु इतर धर्मावलम्बियों पर इन सब का कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है यह सोचने का विषय है ? । इन्हीं यत्नों से धर्म, समाज का विस्तार, गौरव बढ़ सकता है यह सत्य है। वह द्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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