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में अधिक स्पष्ट, पुष्ट एवं जीवन-प्राप्त हुई हैं। सनातन धर्म की दृष्टि से जितना महत्व जगन्नाथपुरी, काशी, सारनाथ, सोमेश्वर, बद्रीनाथ का है, उससे उतना ही अधिक महत्व जैनधर्म की दृष्टि से मथुरा, सांची, सारनाथ, वनारस, सम्मेतशिखर, शत्रुजय, गिरनार, आबू आदि धर्मस्थानों का है।
विदेशीय शिल्पकला-शास्त्रियोंने इन स्थानों में प्रकट हुई दोनों कलाओं की भूरी भूरी प्रशंसा की है। बंगाल की एशियाटिक सोसायटी का इस दृष्टि से कार्य अधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ हम एक दूसरी शिल्पकला को तुलनात्मक दृष्टियों से देखने नहीं बैठे हैं, अगर ऐसा किया जाय तो एक रामायण खड़ा हो सकता है । हमारा आशय इतना ही है कि जैन-शिल्पकला का भाव भारतीय शिल्पकला के इतिहास में कितना महत्व रखता है ? । ____ यह सब जानते हैं कि पांडव, एलोरा और एजेन्टा की गुफाओं का कितना महत्व है और यह भी सब जानते हैं कि इन्हें पहिले एक स्वर से बौद्धशिल्पकला के नमूने बतला दिये गये थे। लेकिन अब अधिकाधिक शोध-खोज से यह भ्रमवश कहा हुआ प्रतीत होने लगा है। इन गुफाओं में कुछ
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