Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ किंचित् प्राक्कथन वह इन पत्रो के पढ़ने ही से ज्ञात हो सकेगा। और कुछ परिचय देने की आवश्यकता नही है। भारत के प्राचीन इतिहास के संशोधन तथा प्राचीन लिपियों का ज्ञान प्राप्त करने में मुझे सर्व प्रथम इन्ही की लिखी हुई पुस्तको का अवलोकन मार्ग-दर्शक बना। ६ - पत्र संग्रह मे छठा स्थान स्वर्गस्थ बाबू काशीप्रसादजी १ जायसवाल के पत्रो का है। बाबू काशीप्रसादजी पटना के रहने वाले एक बड़े नामी बैरिस्टर थे । हिन्दी और अंग्रेजी के बहुत बड़े लेखक थे । प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्रिका सरस्वती में उनके विविध विचारपूर्ण और विषय विवेचक लेख निकला करते थे। वे बड़े राष्ट्र भक्त थे और भारतीय संस्कृति के विशिष्ठ मर्मज्ञ और विधिवेत्ता थे। हिन्दी पॉलिटी नामक प्रख्यान पुस्तक के वे लेखक थे । प्राचीन भारत के इतिहास की अनेक अज्ञात गुत्थीयो को सुलझाने में वे सदा निमग्न रहते थे । उनके साथ मेरा परिचय उपयुक्त पूना के भाण्डारकर प्राच्य विद्या सशोधन मन्दिर के कार्यारभ के साथ ही हुआ । प्राचीन जैन इतिहास की बहुत सी गुत्थियां सुलझाने में मेरा सहयोग वे बड़े सौहार्द्र भाव से चाहने लगे थे। मैं भी उनकी उत्कट इतिहास मर्मज्ञता का परिचय प्राप्त कर उनके प्रति आदर भाव रखने लगा। भारत के प्राचीन इतिहास के एक प्रकरण को लेकर मेरा इनके साथ वैसा सबन्ध वना। मैंने सर्वप्रथम उड़ीसा के खण्डगिरि पर्वत स्थित राजा खारवेल के उस प्राचीनतम शिलालेख को कुछ विवरण के साथ एक पुस्तक के रूप में गुजराती मे प्रकट किया। यह पुस्तक "प्राचीन जैन शिलालेख संग्रह" प्रथम भाग, इस नाम से भावनगर की "जैन आत्मानद सभा" द्वारा प्रकाशित हुई। इसकी एक प्रति स्वर्गस्थ कुमार देवेन्द्रप्रसाद जैन ने उनको दिखाई । उसे देखकर उनके मन मे खण्डगिरि वाले उस लेख का पुनर्वाचन करने की इच्छा उत्पन्न हुई । उक्त अभिलेख अनेक वर्षों से विशिष्ठ पुरातत्वज्ञो का एक आकर्पण का विषय बन रहा था परन्तु

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 205