Book Title: Mere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 13
________________ किचित् प्राक्कथन युवक थे। प्रतिभा भी इनकी बहुत तेज थी । हिन्दी और अंग्रेजी दोनो के अच्छे मर्मज्ञ एवं लेखक थे। पूना में रहते हुये मैंने जैन साहित्य संशोधक समिति नाम की सस्था की स्थापना की और उसके द्वारा शोध विषयक एक अच्छे प्रौढ त्रैमासिक पत्र के प्रकाशन की योजना की। इस पत्र के प्रकाशन मे इनका वहुत हार्दिक सहयोग रहा, परन्तु दुर्भाग्य से अल्पावस्था में ही इनका स्वर्गवास हो गया। मेरे लिये यह एक आघात जनक प्रसंग था। इनके पत्रों के पढ़ने से ज्ञात होगा कि इनका मुझ पर कितना सौहार्दपूर्ण सद्भाव था। इन्होने विहार के प्रारा नगर में एक अच्छा, जैन साहित्य के प्रकाशन का केन्द्र स्थापित किया था और उसके द्वारा अनेक महत्व के जैन ग्रंथो का प्रकाशन कार्य भी शुरु किया था। ३-~पत्र संग्रह मे तीसरा स्थान इदौर निवासी स्वर्गस्थ श्री केशरीचन्दजी भंडारी के पत्रो का है। ___ श्री केशरीचन्दजी इन्दौर के तत्कालीन जैन समाज के एक प्रसिद्ध व्यक्ति एवं सामाजिक कार्यकर्ता थे । ये संप्रदाय से स्थानकवासी आम्नाय के मानने वाले और उस आम्नाय के अग्रणी व्यक्तियो मे से थे; परन्तु सामूहिक रूप से जैन समाज की प्रगति और उन्नति के विशेष इच्छुक थे। जैन साहित्य और तत्वज्ञान के अभ्यासी और मननशील श्रद्धालु पुरुष थे। मेरा परिचय उनको उपरोक्त स्वर्गस्थ देवेन्द्रकुमार जैन ने कराया। फिर इनके साथ अच्छा पत्र व्यवहार होता रहा। मैं जो साहित्यिक और सामाजिक प्रगति विपयक कुछ कार्य करना चाहता था, उसमें इनकी अच्छी अभिरुचि हो गयी थी। इनके पत्रो के पढने से ये बाते भली भाति ज्ञात हो सकेगी। वाद में मेरे कार्य क्षेत्र मे विशेप परिवर्तन होने के कारण इनके साथ फिर विशेप संबन्ध न रहा। फिर उनका स्वर्गवास हो गया। ४-पत्र सग्रह मे चौथा स्थान कलकत्ता के स्वर्गीय वाबू पूरणचंदजी नाहर के पत्रो का है। वावू पूरणचन्दजी नाहर कलकत्ता के एक

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