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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे उस्सास-पज्ज-णिमि० णिय० बं० अणु० दुभागूणं बंधदि । तिरिक्खगदि-एइंदि० पंचिंदि०-ओरालि०-वेउन्वि०--हुडसं०-दोअंगो--असंप०--तिरिक्वाणु०-आदा-- उज्जो०-अप्पसत्थ० -तस-थावर-बादर-पत्ते०-असुभादिपंच० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णि० अणु० दुभागूणं० । मणुसगदि-मणुसाणु० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णिय. अणु० तिभाग० । देवगदि-समचदु०-वजरि० देवाणुपु०-पसत्थ०-सुभादिपंच० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० तं तु० । बेइंदि० तेइं०-चदुरिं०-चदुसंठा-चदुसंघ-सुहुम-साधार० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णिय० अणु० संखेजदिभागू० । एवं सुभ० ।
२४. जसगि० उक्क०हिब० तेजा-क-वएण०४-अगु०४-बादर-पज्जत्त-पत्तेणिमि० णि• बं० । णि० अणु० दुभागू० । तिरिक्वगदि-एइंदि०-पंचिंदि०पोरालि०-वेउवि०-हुडसं०-दोअंगो०--असंपत्त--तिरिक्वाणु०--अदाउज्जो०-अप्पसत्थ०-तस-थावर-अथिरादिपंच० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णिय. अणु० दुभागू० । मणुसगदिदुगं सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णिय० अणु० तियोंका नियमसे बन्धक होता है, जो अनुत्कृष्ट दो भाग न्यून बाँधता है। तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर, हुण्डसंस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, प्रत्येक और अशुभादिक पाँच इन प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट दो भाग न्यन स्थितिका बन्धक होता है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट तीन भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । देवगति, समचतुरस्त्रसंस्थान, वज्रर्षभनाराचसंहनन, देवगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति और शुभादि पाँच इन प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है। यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो नियमसे वह उत्कृष्टसे अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, चार संस्थान, चार संहनन, सूक्ष्म और साधारण इन प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् होता है । यदि बन्धक होता है,तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यूनका बन्धक होता है। इसी प्रकार शुभ प्रकृतिके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
२४. यश-कीर्ति प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर और निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है। जो नियमसे अनुत्कृष्ट दो भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । तिर्यश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर, हुण्डसंस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी, प्रातप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर और अस्थिर आदि पाँच इन प्रकृतियों का कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट दो भाग न्यूनका बन्धक होता है। मनुष्यगतिद्विकका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित्
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