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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
बं० । यदि बं० पिय० अ० दुभागू० । मणुसग ०- मणुसाणु० सिया बं० सिया बं० | यदि बं० गिय० अ० तिभागू० । समचदु०-पसत्थ० - थिरादिछ० सिया बं० सिया बं० । यदि बं० । तं तु० । चदुसंठा० सिया वं० सिया अव० | यदि वं० रियमाणु संखेज्जदिभागू० ।
१६. उज्जो० उक्क० हि० बं० तिरिक्खग० ओरालि ०-तेजा० क० - हुंड०aur०४ - तिरिक्खाणु० गु०४-वादर-पज्जत- पत्ते ० -- अथिरादिपंच० - णिमि० णि० बं० । तं तु० । एइंदि० - पंचिंदि० ओरालि० अंगो० - असंप ० - अप्पसत्थ० -तस०-थावर-दुस्सर० सिया बं० सिया अवं० । यदि बं० तं तु० ।
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२०. अप्पसत्थ० उक्क० हिदि० बं० अगु०४-तस०४- अथिरादिछ० - णिमि० लिय०
पंचिदि०-तेजा० क० - हुंड० -वरण ०४बं० । तं तु० । गिरयगदि - तिरिक्ख
कदाचित् प्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट दो भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो नियम से अनुत्कृष्ट तीन भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति और स्थिर श्रादि छह प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है । यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो एक समय न्यून से लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है । चार संस्थानोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो नियम से अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है ।
१९. उद्योत प्रकृतिक उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, श्रदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्च गत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पाँच और निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है । यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो एक समय न्यून से लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है । एकेन्द्रियजाति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, श्रसम्प्राप्तासृपाटिका संहनन, अप्रशस्त - विहायोगति, त्रस, स्थावर और दुःस्वर प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित्
बन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है । यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है ।
२०. प्रशस्त विहायोगतिकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पञ्चेन्द्रिय जाति, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है। यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है। नरकगति, तिर्यञ्चगति, दो शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, अप्रशस्त विहायोगति, दो आनुपूर्वी और उद्योत प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट भी बाँधता
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