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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० तं तु० । चदुसंघ० सिया बं० सिया अव० । यदि बं० णि. अणु० संखेजदिभागणं बं० । एवं पसत्थवि०-सुभग-सुस्सर-आदेंज।
१५. णग्गोद० उक्क हिदिवं पंचिंदि-ओरालि-तेजा०-क०-ओरालि०अंगो०-वएण०४-अगु०४-अप्पसत्थ०-तस०४-अथिरादिछ०-णिमि० णिय० बं० । णि० अणु० संखेजदिभागूणं । तिरिक्ख-मणुसग०-चदुसंघ-दोआणु०-उज्जो० सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० णिय. अणु० संखेजदिमागणं बं० । वजणारा सिया बं० सिया अबं० । यदि बं० तं तु० । एवं वज्जणारायण । णवरि दो गदि-चदुसंठा०-दोआणु०-उज्जो सिया बं. सिया अबं० । यदि बं० णिय० अणु० संखेजदिभागू० । सादि० एवं चेव । णवरि पारायणं सिया० । तं तु । एवं पारायणं ।
१६. खुज्जसंठाणं उक्क०हिदिवं० तिरिक्खग०-पंचिंदि०-ओरालि-तेजा-क०ओरालि०अंगो०-वएण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-अप्पसत्थ०-तस०४-अथिरादिछ०होता है। इसी प्रकार प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और प्रादेय प्रकृतियोंके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१५. न्यग्रोध परिमण्डल संस्थानकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है, वह नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है। तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, चार संहनन, दो आनुपूर्वी, और उद्योत प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यन स्थितिका बन्धक होता है। वज्रनाराचसंहननका कदाचित् बन्धक होता और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है,तो नियमसे एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार वज्रनाराचसंहननके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि दो गति, चार संस्थान, दो आनुपूर्वी और उद्योतका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है,तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार स्वाति संस्थानके आश्रयसे सन्निकर्प जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि वह नाराचसंहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट बन्धक भी होता है और अनुत्कृष्ट बन्धक भी होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है,तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार नाराचसंहननके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
१६. कुब्जक संस्थानकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग
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