Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 11
________________ 2 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन प्रस्तुत कृति की आधारभूत मूल पक्तियाँ सम्यक् चारित्र का अन्यथारूप बाह्य क्रिया पर तो इनकी दृष्टि है और परिणाम सुधरने-बिगड़ने का विचार नही है और यदि परिणामों का भी विचार हो तो जैसे अपने परिणाम होते दिखाई दें उन्हीं पर दृष्टि रहती है । परन्तु उन परिणामों की परम्परा का विचार करने पर अभिप्राय में जो वासना है, उसका विचार नहीं करते । और फल लगता है सो अभिप्राय में जो वासना है उसका लगता है । इसका विशेष व्याख्यान आगे करेंगे। वहाँ स्वरूप भलीभाँति होगा । Jain Education International आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी : मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ-238 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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