Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 62
________________ सम्यक्चारित्र के लिए किए गए विपरीत प्रयत्नों के सन्दर्भ में ... प्रश्न :- मिथ्याभाव शब्द के अर्थ में मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनों शामिल हैं तो आप मिथ्याभाव का अर्थ सिर्फ अभिप्राय क्यों करते हैं ? उत्तर :- विपरीत अभिप्राय होने पर ही ये तीनों मिथ्याभाव को प्राप्त होते हैं, अतः मुख्यता की अपेक्षा मिथ्याभाव शब्द का अर्थ विपरीत अभिप्राय करने में कोई दोष नहीं है। क्रियाओं पर शुभाशुभ परिणामों का आरोप करके उन्हें शुभक्रिया या अशुभक्रिया कहने के प्रयोगों से तो सारा जिनागम भरा पड़ा है; परन्तु क्रियाओं पर विपरीत अभिप्राय का आरोप करके उन्हें मिथ्या कहने के प्रयोग बहुत कम हैं। इसी प्रकार शुभभावों पर विपरीत अभिप्राय का आरोप करके उन्हें शुभरूप मिथ्याप्रवृत्ति कहते हुए वे लिखते हैं : “यहाँ ऐसा जान लेना कि व्यवहारधर्म की प्रवृत्ति से पुण्यबन्ध होता है; इसलिए पापप्रवृत्ति की अपेक्षा तो इसका निषेध है नहीं; परन्तु यहाँ जो जीव व्यवहार प्रवृत्ति ही से सन्तुष्ट होकर सच्चे मोक्षमार्ग में उद्यमी नहीं होते हैं, उन्हें मोक्षमार्ग में सन्मुख करने के लिए उस शुभरूप मिथ्याप्रवृत्ति का भी निषेधरूप निरूपण करते हैं।" इस गद्याँश में 'शुभरूप मिथ्याप्रवृत्ति' शब्द का प्रयोग शुभभाव एवं शुभक्रिया में मिथ्या अभिप्राय का आरोप करके किया गया है। पण्डितजी ने व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि के चार प्रकार बताये हैं, जो इस प्रकार हैं - (1) कुल अपेक्षा धर्मधारक व्यवहाराभासी – पृष्ठ 215 (2) परीक्षा रहित आज्ञानुसारी धर्मधारक व्यवहाराभासी, पृष्ठ 216 (3) सांसारिक प्रयोजनार्थ धर्मधारक व्यवहाराभासी,पृष्ठ 218-21 (4) धर्मबुद्धि से धर्मधारक व्यवहाराभासी – पृष्ठ 221 से 248 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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