Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 93
________________ Jain Education International प्रश्न :- उक्त तालिका से ज्ञानी और अज्ञानी का अन्तर समझ में आ गया। कृपया मिथ्यादृष्टि से लेकर सिद्धभगवान 84 तक विभिन्न भूमिकाओं को क्रिया परिणाम और अभिप्राय के सन्दर्भ में स्पष्ट करें। उत्तर :- निम्न तालिका द्वारा अनादि मिथ्यादृष्टि से सिद्धदशा तक की विभिन्न अवस्थाओं को क्रिया, परिणाम और अभिप्राय के सन्दर्भ में स्पष्ट किया गया है। For Private & Personal Use Only भूमिका क्रिया परिणाम अभिप्राय अनादि मिथ्यादृष्टि पञ्चेन्द्रिय के भोग एवं भक्ति, मिथ्यान्न की भूमिका में होने योग्य सभी जीवादि प्रयाजनभूत तत्त्वों के बारे में | दया दान व्रतादि सभी प्रकार के भाव अर्थात् षट् लेश्या रूप | विपरीत श्रद्धान। प्रकार की अशुभ एवं शुभक्रिया। परिणाम। मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिङ्गी| पञ्च महाव्रत रूप आचरण | क्रिया के अनुरूप महामन्द कषाय रूप | बाह्य क्रिया और शुभरागरूप क्रियाओं में मुनि परिणाम। कर्तृत्त्वबुद्धि एवं धर्मबुद्धि। सम्यक्त्व सन्मुख धन्धा-व्यापार, विषय भोग । | विषय-कषाय के परिणामों के साथ- | दर्शनमोह की मन्दता के निमित्त से स्वरूप मिथ्यादृष्टि आदि क्रियाओं के साथ-साथ | साथ तत्त्व निर्णय, भाव-भासन आदि की रुचि, महिमा एवं स्वसन्मुखता के जिनेन्द्र दर्शन, पूजन, स्वाध्याय | के परिणाम। प्रयत्न से स्वभाव की ओर ढलता हुआ सदाचरण आदि क्रियाओं की अभिप्राय तथा गलता हुआ मिथ्यात्व । मुख्यता । (मनुष्यगतिके अपेक्षा) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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