Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 109
________________ 100 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन 3. “बाह्य क्रिया पर तो इनकी दृष्टि है, परिणाम सुधरनेबिगड़ने का विचार नहीं है" - इस कथन की व्याख्या कीजिए ? 4. परिणामों का सुधरना या बिगड़ना क्या है ? स्पष्ट कीजिये ? 5. व्यवहाराभासी के धर्माचरण में होने वाली विकृतियों का विश्लेषण कीजिए? 6. हमारी भक्ति पूजा आदि में पाई जानी वाली विकृतियों की चर्चा कीजिये? 7. उपवास की क्रिया में अज्ञानी के परिणामों की विकृति का वर्णन कीजिए ? इस सन्दर्भ में क्रिया और परिणामों का सुमेल कैसे होता है ? 8. परिणामों की परम्परा' का आशय स्पष्ट कीजिये? 9. 'अभिप्राय की वासना' का स्वरूप उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये? 10. महाव्रत धारण करने पर भी अज्ञानी के अभिप्राय में क्या भूल रह जाती है, विस्तृत विवेचन कीजिए ? 11. मिथ्यादृष्टि मुनि और सम्यग्दृष्टि अव्रती के क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का तुलनात्मक विवेचन कीजिए ? 12. विषयसेवन और परिषहादि सहने में अज्ञानी और ज्ञानी के परिणामों की तुलनात्मक विवेचन कीजिये? 13. अभिप्राय, परिणाम और क्रिया को सुधारने का क्या उपाय है ? क्या शास्त्राभ्यास करने से अभिप्राय और परिणाम सुधर सकते हैं ? 14. क्रिया परिणाम अभिप्राय की कसौटी पर स्वयं का और दूसरों का मूल्यांकन किस प्रकार करना चाहिए ? 15. सम्यक् अभिप्राय कैसा होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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