Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 108
________________ 99 सम्यक्चारित्र के लिए किए गए विपरीत प्रयत्नों के सन्दर्भ में ... इसप्रकार विभिन्न बिन्दुओं से क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का विवेचन किया गया। प्रश्न :- इस विषय को समझन से क्या लाभ ह ? उत्तर :- आत्महित के लिए इस प्रकरण को समझना अत्यन्त आवश्यक है। इसे समझने से वस्तु-स्वरूप का निम्नानुसार यथार्थ निर्णय होता है। (1) आत्मा बाह्य-क्रियाओं का कर्ता-भोक्ता नहीं है। (2) मात्र बाह्याचरण से धर्म अर्थात् मुक्तिमार्ग नहीं होता। (3) मात्र शुभ-परिणामों से धर्म अर्थात् मुक्तिमार्ग नहीं होता। (4) अभिप्राय में विपरीतता के रहते हुए परिणामों में वीतरागता का अंश भी प्रगट नहीं हो सकता। (5) पर्यायों से दृष्टि हटाकर द्रव्य-स्वभाव में दृष्टि देने से ही अभिप्राय सम्यक् होता है और मोक्षमार्ग प्रगट होता है। इसप्रकार यथार्थ तत्त्व-निर्णय होने से दृष्टि स्वभाव सन्मुख होने पर तत्काल मुक्तिमार्ग प्रगट होता है। हम सभी इस विषय को गहराई से समझकर जिनागम के आलोक में वस्तु-स्वरूप का यथार्थ निर्णय करके एक, अभेद, सामान्य, नित्य, ज्ञायकभाव की अनुभूति से अभिप्राय और परिणामों को स्वसन्मुख करके अपुनर्भवरूप शाश्वत सिद्धपद प्राप्त करें – इसी भावना से यह प्रकरण पूर्ण करता हूँ। प्रश्न1. व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? उनका संक्षिप्त स्वरूप बताइये ? 2. पण्डित टोडरमलजी ने क्रिया, परिणाम और अभिप्राय की चर्चा किस प्रकरण में और किस प्रकार की है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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