Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 97
________________ 88 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन उत्तर :- घातिया कर्मो का बन्ध बाह्य-प्रवृत्ति के अनुसार नहीं होता, अन्तरंग कषाय शक्ति के अनुसार होता है। इसलिए द्रव्यलिंगी को सभी घातिकर्मो का बन्ध बहुत स्थिति-अनुभाग सहित होता है; तथा अविरत सम्यग्दृष्टि को और देशव्रती को मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कर्मो का बन्ध तो है नहीं, और अप्रत्याख्यानी आदि का बन्ध अल्प स्थितिअनुभाग सहित होता है। अतः ये मोक्षमार्गी हैं, परन्तु मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि मोक्षमार्गी नहीं है। उपर्युक्त विवेचन मोक्षमार्ग प्रकाशक के सातवें अधिकार में किया गया है। इस प्रकरण में पण्डित टोडरमलजी स्पष्ट करना चाहते हैं कि अभिप्राय में विपरीतता होने के कारण द्रव्यलिंगी मुनि मोक्षमार्गी नहीं है, अतः उसे महाव्रतादिरूप आचरण तथा महामन्दकषाय होने पर भी उसकी अपेक्षा तीव्र कषायवाले अव्रत-सम्यग्दृष्टि से भी हीन बताया गया है। उसकी हीनता को आगम-प्रमाणों से पुष्ट करते हुए वे पृष्ठ 258 पर लिखते हैं :___ “समयसार शास्त्र में द्रव्यलिंगी मुनि की हीनता गाथा, टीका और कलशों में प्रगट की है। तथा पञ्चास्तिकाय टीका में जहाँ केवल व्यवहारनयावलम्बी का कथन किया है, वहाँ व्यवहार पञ्चाचार होने पर भी उसकी हीनता ही प्रगट की है। तथा प्रवचनसार में संसारतत्त्व द्रव्यलिंगी को कहा है। परमात्मप्रकाशदि अन्य शास्त्रों में भी इस व्याख्यान को स्पष्ट किया है। द्रव्यलिङ्गी के जो जप-तप शील, संयमादि क्रियायें पाई जाती हैं, उन्हें भी इन शास्त्रों में जहाँ-तहाँ अकार्यकारी बताया है, सो वहाँ देख लेना यहाँ ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से नहीं लिखते हैं। इसप्रकार केवल व्यवहाराभास के अवलम्बी मिथ्यादृष्टियों का निरूपण किया।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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