Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 94
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org भूमिका अव्रती श्रावक व्रती श्रावक भावलिङ्गी मुनिराज अर्हन्त भगवान सिद्ध भगवान क्रिया विषयभोगादितथा भक्ति दया- दान आदि रूप क्रिया अणुव्रतादिरूप क्रिया पञ्च महाव्रतरूप आचरण आसन, विहार, धर्मोपदेश आदि क्रिया । अयोगी दशा होने से क्रिया रहित ! परिणाम अभिप्राय विषयासक्ति आदि अशुभ एवं भक्ति, दया रंगराग और भेद से भिन्न ज्ञायकस्वभाव में अहं तथा सात तत्त्वों की यथार्थ प्रतीति । दान आदि शुभ परिणाम एवं अनन्तानुबन्धी के अभावरूप वीतरागता । अणुव्रतादि रूप शुभभाव एवं दो कषाय चौकड़ी के अभावरूप वीतरागता महाव्रतादि रूप शुभभाव एवं तीन कषाय के अभाव रूप वीतरागता । अणुव्रतादि की क्रिया और शुभभाव का भी अकर्तृत्त्व महाव्रतादि रूप क्रिया एवं शुभभाव का भी अकर्तृत्त्व | अनन्तज्ञान, दर्शन सुख और वीर्यादि पूर्ण परमावगाढ़ सम्यक्त्वरूप दृढ़ प्रतीति निर्मल परिणाम पूर्ववत् पूर्ववत् 85

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