Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 66
________________ 57 सम्यक्चारित्र के लिए किए गए विपरीत प्रयत्नों के सन्दर्भ में ... है - इस अपेक्षा से तो वे बिगड़े ही कहे जायेंगे, क्योंकि वह पूजन कर रहा है और वहाँ से चित्त हटकर दूसरी जगह गया तो उन भावों में शिथिलता हुई। यदि एक विद्यार्थी गणित की कक्षा में अंग्रेजी की किताब पढ़े तो वह दण्डनीय होगा या प्रशंसनीय ? वास्तव में वह दण्डनीय ही होगा। यदि वह गणित में होशियार हो और अंग्रेजी में कमजोर, तो उसे गणित के अध्यापक से अनुमति लेकर पुस्तकालय में अंग्रेजी का अध्ययन करना चाहिए; परन्तु गणित की कक्षा में बैठकर अंग्रेजी पढ़ने से गणित विषय का तथा गणित के अध्यापक का अपमान होगा और गलत परम्परा को प्रोत्साहन मिलेगा। गाँधीजी को भी एक बार बीमार पिता की सेवा करने के लिए भी कक्षा से अनुपस्थित रहने पर दण्ड मिला था। ___परिणामों के असंख्यात भेद होते हैं, अतः उक्त विश्लेषण स्थूल दृष्टि से किया गया है - ऐसा समझना चाहिए। यदि पूजन में कोई तत्त्व की बात आ गई हो और मन उसी में रम जाए तो यह तो पूजन की सार्थकता हुई। यह परिणाम पूजन के प्रयोजन का पोषक होने से सुधरा हुआ ही कहा जाएगा। प्रश्नः- अभिप्राय सुधरे बिना परिणाम सुधर सकते हैं या नहीं ? उत्तर:- अभिप्राय सुधरे बिना अर्थात् सम्यग्दर्शन हुए बिना वीतराग भाव प्रारम्भ ही नहीं होता अर्थात् परिणाम नहीं सुधर सकते। इसीलिए तो सम्यग्दर्शन को मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी कहा गया है। व्यवहारिक दृष्टि से सम्यक्त्व सम्मुख मिथ्यादृष्टि को होने वाली तत्त्वरुचि, आत्महित की भावना, तत्त्व निर्णय, स्वरूप सन्मुखता का प्रयत्न आदि शुभभावों को सुधरे हुए परिणाम कहा जाता है। तीव्र पाप की अपेक्षा मन्द पाप को भी सुधरा हुआ परिणाम कहा जाता है, किन्तु यह सब स्थूल/लौकिक व्यवहार कथन है। प्रश्न :- यदि धन्धा-व्यापार करते समय तत्त्व-चिन्तन करने लगे तो वह परिणाम बिगड़ा हुआ कहा जाएगाा या सुधरा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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