Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 59
________________ 50 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन प्रश्नः- बन्ध और मोक्ष तो परिणामों से होता है, फिर अभिप्राय का मोक्षमार्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है ? मिथ्यादृष्टि जीव नरक-निगोद और स्वर्गादि चारों गतियों में भ्रमण करता है, तो संसार भ्रमण में अभिप्राय की क्या भूमिका है ? उत्तर:- यह बात सत्य है कि मिथ्यादृष्टि को चारों गतियों में भ्रमण करने योग्य परिणाम होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अभिप्राय में विपरीतता होते हुए भी परिणाम नवमें ग्रैवेयक जाने योग्य भी हो जाते हैं; परन्तु जब तक विपरीत अभिप्राय रहेगा, तब तक चारों गति का बन्धन छेदने योग्य संवर-निर्जरा के वीतरागी परिणाम नहीं हो सकते। विपरीत अभिप्राय की इस धुरी पर ही शुभाशुभ परिणामों का दुष्चक्र चलता है। एक गाय 10 फुट लम्बी रस्सी से बँधी है और वह रस्सी एक मजबूत खूटे से बँधी है। 10 फुट के घेरे में वह गाय स्वतन्त्रता पूर्वक घूम-फिर सकती है। वह चाहे बैठे, चले या सो जाए, लूँटा उसमें कुछ भी हस्तक्षेप नहीं करेगा। 10 फुट के घेरे में घूमने में रस्सी का योगदान है, खूटे का नहीं; परन्तु वह उस घेरे के बाहर नहीं नहीं निकल सकती, इसमें खूटे का ही कमाल है। यदि लूँटा उखड़ जाए ता वह गले में रस्सी बँधी रहने पर भी घेरे से बाहर भाग जाएगी। इसीप्रकार यह जीव शुभाशुभ भावरूपी रस्सी से बँधकर चारों गतियों में घूम रहा है, परन्तु वह रस्सी मिथ्यात्वरूपी खूटे से बँधी है, अतः जीव चार गति के घेरे से बाहर नहीं निकल सकता। मिथ्यात्व का खूटा उखड़ जाने पर वह घेरे से बाहर आ जाता है अर्थात् मुक्तिमार्ग प्रारम्भ हो जाता है; भले अभी थोड़ी देर पुण्य-पाप की रस्सी बँधी हो, परन्तु वह उसे घेरे के भीतर बाँध नहीं सकती अर्थात् अनन्तानुबन्धी बन्ध नहीं होता। इसप्रकार संसार भ्रमण का अन्त न होने में मूल कारण विपरीत अभिप्राय ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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