Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 50
________________ 41 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का जीवन पर प्रभाव हैं। वचन और काय की क्रियायें भी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही की जाती हैं। मन के विकल्पों के अनुसार होने वाली क्रियायें हमारे संयोग-वियोग यश-अपयश आदि में निमित्त बनती हैं। बन्ध और मोक्ष के समान सुख-दुःख का वेदन भी परिणामों के अनुसार होता है, क्रिया के अनुसार नहीं । इसका विशेष स्पष्टीकरण आगे दिये गये प्रकरण में किया जा रहा है। 2. परिणामों का प्रभाव :- यद्यपि परिणामों के फल का संकेत क्रिया के फल के साथ किया जा चुका है, तथापि यहाँ परिणामों के फल का विशेष स्पष्टीकरण किया जाना अभीष्ट है। क्रिया का फल शून्य है तो परिणामों का फल शत-प्रतिशत अर्थात पूरा का पूरा मिलता है। यहाँ परिणामों से आशय मुख्यतया शुभाशुभभावों से और वीतरागभावों से है, क्योंकि ये भाव ही बन्ध-मोक्ष या दुःख-सुख के कारण होते हैं । शत-प्रतिशत से आशय यह है कि जैसे मन्द या तीव्र शुभाशुभभाव होंगे वैसे ही मन्द या तीव्र लौकिक सुख-दुःख होंगे और वैसी ही कर्म-प्रकृतियाँ उतने ही स्थिति-अनुभाग सहित बधेगी। जितने अंशों में वीतराग परिणति होगी, उतना ही अतीन्दिय सुख होगा और उतने अंश में संवर-निर्जरा होगी। इसप्रकार परिणामों का फल पूरा मिलता है और मात्र क्रिया का फल कुछ नहीं है । प्रत्येक जीव को अपने परिणामों का फल भोगना पड़ता है - इस आशय के प्रमाणों की कमी नहीं है। परिणामों के अनुसार बन्ध-मोक्ष तो होता ही है, लौकिक सुख-दुःख भी परिणामों के अनुसार होते हैं, क्रिया के अनुसार नहीं। यदि चार व्यक्ति एक साथ भोजन कर रहे हों या टी.वी. देख रहे हों, तो सबको एक-सा आनन्द नहीं आएगा; लेकिन जिसका जैसा राग होगा, उसे वैसा सुख (इन्द्रिय सुख) का वेदन होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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