Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 41
________________ 32 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन यद्यपि हमारे परिणामों को जगत सीधे नहीं जान सकता, तथापि हम स्वयं तो उन्हें जानते ही हैं । उन्हें न केवल हम जानते हैं, परन्तु उनसे उत्पन्न सुख-दुःख भी भोगते हैं। मान लीजिए, प्रवचन के समय माइक आदि की व्यवस्था भंग हो जाने से यदि प्रवचनकार को क्रोध आ जाए, परन्तु वह यह सोचकर उस क्रोध को व्यक्त न करे कि यदि मैं क्रोध व्यक्त करूँगा तो मेरी प्रतिष्ठा खराब होगी; तो कौन जानेगा कि उसे क्रोध आ गया है ? सब यही समझेंगे कि पण्डितजी बड़े शान्त परिणामी हैं। यद्यपि उनके परिणामों में क्रोध है, और वे आकुलता का वेदन भी कर रहे हैं तथापि उन्हें शान्त परिणामी समझा जा रहा है, क्योंकि उन्होंने क्रिया के माध्यम से क्रोध व्यक्त नहीं किया। इसी प्रकार किसी दुकान का कोई विक्रेतायाहवाईजहाज की परिचारिका मुस्कराके आपका स्वागत करते हुए, दुःखी भी हो सकती है। हो सकता है कि अपनी माँ की बीमारी के कारण उसने छुट्टी मांगी हो, परन्तु उसके अधिकारी ने उसे छुट्टी न दी हो; अतः वह माँ की चिन्ता में दुःखी हो, किन्तु मुस्कराते हुए आपका स्वागत करना उसकी ड्यूटी है; अतः उसे मुस्कराना तो पड़ेगा ही, क्योंकि उसे मुस्कराकर स्वागत करने का ही वेतन मिलता है। यद्यपि आप उसके दुःख को नहीं जान सकेंगे, परन्तु वह तो जान रही है और भोग भी रही है । इसीप्रकार आपसे हँस-हँस कर बातें करते हुए अपना माल दिखाने वाला विक्रेता, आपके द्वारा माल न खरीदे जाने पर भीतर ही भीतर खीझता रहता है, परन्तु वह अपनी खीझ व्यक्त नहीं कर सकता; अतः आप उसे शान्त स्वभावी ही समझेंगे। जिन परिणामों को हम दूसरों के सम्मुख प्रगट नहीं होने देना चाहते, हम उन्हें क्रिया में व्यक्त न होने देने का प्रयास करते हैं । यह बात अलग है कि हम उसमें सफल हो पाते हैं या नहीं ? यह तो हमारी अभिनय कुशलता या अकुशलता पर निर्भर है, यदि माया कषाय की तीव्रता होगी तो हम अपने परिणामों को छिपाने में सफल हो जायेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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