Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

Previous | Next

Page 43
________________ 34 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन प्रश्न :- अभिप्राय को समझने के लिए हमें किसप्रकार का प्रयत्न करना चाहिए ? उत्तर :- दैनिक जीवन में अपने जो भी परिणाम होते हैं, हम उनमें प्रश्न चिन्ह लगायें कि वे क्यों होते हैं ? जैसे हम पूजा क्यों करते हैं ? - इसप्रकार परिणामों के सामने 'क्यों' लगाकर उसका कारण खोजा जाए। फिर जो उत्तर आए उसमें भी क्यों लगाया जाए। इसप्रकार दो-चार बार प्रश्नचिन्ह लगाकर विचार करने से जो अन्तिम उत्तर होगा वह हमारे अभिप्राय को बताएगा । उदाहरणार्थ निम्नांकित प्रश्नोत्तर देखें : प्रश्न :- हम व्यापार क्यों करते हैं ? उत्तर :- धन कमाने के लिए। प्रश्न :- धन क्यों कमाते हैं ? उत्तर :- भोग-सामग्री जुटाने के लिए। प्रश्न :- भोग-सामग्री क्यों जुटाते हैं ? उत्तर :- सुखी होने के लिए। इससे यह सिद्ध हुआ कि हम भोगों में सुख मानते हैं । यह मान्यता ही हमारा अभिप्राय है। यह अभिप्राय सही है या गलत ? – इसकी मीमांसा एक अलग विषय है, जिसकी चर्चा शास्त्रों में अनेक स्थलों पर की गई है। प्रश्न :- इसप्रकार क्यों' कब तक लगायेंगे? यह तो अन्तहीन प्रक्रिया हो जाएगी? उत्तर :- ‘क्यों' लगाते-लगाते जब प्रयोजनभूत सात तत्त्व के बारे में हमारी मान्यता स्पष्ट हो जाए, तो समझिये कि हमें अभिप्राय का पता चल गया। फिर उसके बाद क्यों लगाने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रक्रिया का विशेष स्पष्टीकरण आगे यथास्थान और भी किया जाएगा। यहाँ तो मात्र अभिप्राय की सूक्ष्मता बताने के लिए संक्षिप्त चर्चा की गई है। प्रश्न :- अभिप्राय स्पष्ट होने के बाद क्यों' प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है या नही ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114