Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 28
________________ 19 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का स्वरूप उक्त शीर्षकों की भाषा से ऐसा भ्रम भी हो सकता है कि यहाँ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की विपरीतताओं का वर्णन किया गया है। परन्तु यदि श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र सम्यक् हैं तो उनमें अन्यथापना कैसा ? और यदि उनमें अन्यथापना है तो वे सम्यक् कैसे ? परन्तु ऐसा भ्रम उन्हीं लोगों को हो सकता है जो भाषा की प्रकृति अर्थात् कथन शैली से अपरिचित हैं। जो लोग भाषा की प्रकृति से परिचित हैं, वे सहज ही जान सकते हैं कि यह तो भाषा का संक्षिप्तरूप है। उसका पूरा अर्थ यही होगा कि सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र के लिए किये गये प्रयत्नों का अन्यथा स्वरूप। लोक में भी भाषा का संक्षिप्तरूप कुछ और होता है तथा उसका पूरा भाव कुछ और होता है। चाचाजी के लिए बनाई गई चाय को 'चाचाजी की चाय' कहने वाले तथा सिर का दर्द मिटाने की दवा को 'सिर दर्द की दवा' कहने वाले हर घर में मिल जायेंगे। ऐसी संक्षिप्त भाषा बोलने और सुनने वाले लोग उसका पूरा भाव भी समझते हैं, इसलिए ऐसे संक्षिप्त कथनों से किसी को कोई आपत्ति या भ्रम नहीं होता। इसी प्रकार यदि हम जिनवाणी के कथनों का प्रसंग और प्रयोजन के अनुकूल पूरा भाव समझ लें तो कोई आपत्ति या भ्रम नहीं रहेगा तथा यथार्थ तत्त्व-निर्णय करना अति सुगम हो जाएगा। अतः जिनागम का मर्म समझने के लिए उक्त सातवें अधिकार का गहराई से अध्ययन अवश्य करना चाहिए। प्रश्न - 1. क्रिया, परिणाम और अभिप्राय शब्दों का प्रासंगिक आशय स्पष्ट कीजिये ? 2. निश्चयाभास, व्यवहाराभास और उभयाभास में होने वाली भूलों को माल और पेकिंग के उदाहरण में घटित कीजिये? 3. ज्ञानी की मान्यता को 'माल' और पेकिंग की भाषा में समझाइये? 4. माल और पेकिंग के उदाहरण को आत्मा और मोक्षमार्ग पर घटित कीजिये? * ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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