Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 38
________________ क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का जीवन में स्थान 29 प्रश्न :-क्षयोपशम ज्ञान को परिणामों में शामिल क्यों किया गया है ? उत्तर :- शास्त्रों के अनुसार यथार्थ धारणा होने पर भी अभिप्राय में विपरीतता बनी रहती है, अतः वह अभिप्राय से भिन्न होने से उसे परिणाम में शामिल किया गया है। इस विपरीतता में दर्शनमोहनीय कर्म प्रकृति का उदय निमित्त होता है। ज्ञान की हीनाधिकता में ज्ञानावरणी कर्म की प्रकृति का क्षयोपशम निमित्त होता है। प्रश्न :- किसी सरल उदाहरण से परिणाम और अभिप्राय में अन्तर स्पष्ट कीजिये? उत्तर :- एक माँ अपने उद्दण्ड बालक को गलती करने पर सुधारने के उद्देश्य से उस पर क्रोध करती है और उसे पीटती है। यहाँ क्रिया और परिणामों में क्रोध होने पर भी अभिप्राय में अपनत्व और हितबुद्धि है। वही माँ जब पड़ोसिन के छोटे बच्चे को गोद मे लेकर प्यार से खिलाती है तब परिणाम और क्रिया में प्रेम होने पर भी अभिप्राय में उसके प्रति अपनत्व या ममत्व नहीं है। इससे परिणाम और अभिप्राय में स्पष्ट अन्तर समझा सकता है। प्रश्न - 1. हमारे जीवन में क्रिया रूपी पर्दे पर घटित होने वाली घटनाओं तथा प्रभाव का विश्लेषण कीजिये? 2. क्रिया और परिणामों की स्वतन्त्रता सिद्ध करते हुए उनमें निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये? 3. 'अभिप्राय' से आप क्या समझते हैं ? क्रिया और परिणामों के सन्दर्भ में अभिप्राय की व्याख्या उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिये ? * ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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