Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 33
________________ 24 क्रिया, परिणाम और अभिप्राय : एक अनुशीलन जैसे हों, परन्तु यहाँ तो क्रिया कुछ और परिणाम कुछ और वाली स्थिति स्पष्ट करना है। ___ आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी के जीवन की वह घटना सुविख्यात है, जब उन्हें छह माह तक इस बात का पता ही नहीं चला कि भोजन में नमक नही है; क्योंकि भोजन की क्रिया के समय भी उनके परिणाम 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' सम्बन्धी विचारों में मग्न रहते थे। ___ वास्तव में क्रिया तो शरीराश्रित है अर्थात् पुद्गल द्रव्य का परिणमन है और परिणाम जीव की पर्याय है। अतः दोनों भिन्न द्रव्यों की पर्यायें होने से उन दोनों में अत्यन्त अभाव है। इसलिए क्रिया और परिणाम एक जैसे हों या न हों, वे परस्पर निरपेक्ष और स्वतन्त्र होते हैं। जब वे एक जैसे होते हैं तब उनमें निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का व्यवहार करके उन्हें एक-दूसरे का कारण-कार्य कहा जाता है। प्रश्नः- परिणाम और क्रिया में निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध होने पर भी परिणाम कुछ और क्रिया कुछ ऐसा कैसे हो जाता है ? उत्तर :- निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध वस्तु का पारमार्थिक स्वरूप नहीं है। जो द्रव्य स्वयं कार्यरूप परिणमित होता है उसे उपादान कहते हैं और जो कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल हो, उस बाह्य-पदार्थ को निमित्त कहते हैं, तथा उपादान में होने वाले कार्य को उपादेय या नैमित्तिक कहते हैं। पारमार्थिक दृष्टि से देखा जाए तो परिणाम और क्रिया में परस्पर कार्यकारण सम्बन्ध नहीं है। दोनों अपनी-अपनी स्वतन्त्र योग्यता से परिणमित होते हैं, अतः क्रिया कुछ हो और परिणाम कुछ और ही प्रकार के हों- यह स्थिति सहज सम्भव है और इसमें दोनों की स्वतन्त्र योग्यता ही कारण है। दूसरी बात यह भी है कि बाह्य क्रिया स्थूल होती है, अतः उसमें बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन नही दिखता, जबकि परिणाम तो क्रिया की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म हैं और उनमें परिवर्तन भी बहुत तेजी से होता है; इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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