Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 16
________________ अध्याय क्रिया, परिणाम और अभिप्राय का स्वरूप यद्यपि मोक्षमार्ग प्रकाशक के चौथे से सातवें अधिकार में किये गये मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र के निरूपण में अभिप्राय की विपरीतता का ही वर्णन है, तथापि 'सम्यक्चारित्र के अन्यथा स्वरूप' का वर्णन प्रारम्भ करते हुए पण्डितजी ने 'क्रिया', 'परिणाम' और 'अभिप्राय' शब्दों का स्पष्ट प्रयोग करके अभिप्राय पर विशेष वजन दिया है। उनके निम्न विचार ही हमें उक्त तीनों शब्दों के बारे में गहन चिन्तन करने के लिए प्रेरित करते हैं : "तथा इनके सम्यक्चारित्र के अर्थ कैसी प्रवृत्ति है, सो कहते हैं :___बाह्यक्रिया पर तो इनकी दृष्टि है और परिणाम सुधरने-बिगड़ने का विचार नहीं है। और यदि परिणामों का भी विचार हो तो जैसे अपने परिणाम होते दिखाई दें उन्हीं पर दृष्टि रहती है, परन्तु उन परिणामों की परम्परा का विचार करने पर अभिप्राय में जो वासना है उसका विचार नहीं करते। और फल लगता है सो अभिप्राय में जो वासना है उसका लगता है। इसका विशेष व्याख्यान आगे करेंगे। वहाँ स्वरूप भलीभाँति भासित होगा।" उक्त पंक्तियों में प्रयुक्त तीनों शब्दों का यहाँ अपना विशिष्ट अर्थ है जो प्रचलित अर्थ से भिन्न है। इन तीनों बिन्दुओं पर विस्तृत चर्चा करने के पहले उनका प्रासंगिक अर्थ समझना अत्यन्त आवश्यक है। 1. मोक्षमार्ग प्रकाशक : पृष्ठ 238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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