Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala JaipurPage 10
________________ क्रिया, परिणाम और अभिप्राय एक अनुशीलन मङ्गलाचरण (दोहा) पञ्च प्रभू को नमन कर, क्रिया और परिणाम । अन्तरंग अभिप्राय का, वर्णन कर निष्काम ॥ बाह्य क्रिया निर्दोष हो, निर्मल हो निज भाव। निज की सदा प्रतीति कर, भव का करूँ अभाव ।। (वीरछन्द) करूँ नमन श्री वीर जिनेश्वर कुन्दकुन्द आचार्य महान । मर्मोद्घाटक जिनवाणी के टोडरमल अद्भुत गुणखान ।। मोक्षमार्ग के महाप्रकाशक अद्वितीय सप्तम अध्याय । गुरुकहान अद्भुत व्याख्याता क्रिया और परिणति अभिप्राय ॥ मैं हूँ एक अभेद त्रिकाली ज्ञायक - यह निर्मल अभिप्राय । प्रगट करूँ, अरु निज परिणति में समता रस का बहे प्रवाह ।। बाह्यान्तर निर्ग्रन्थ दशा आचरण करूँ आगम अनुसार। रत्नत्रय की नौका चढ़कर शीघ्र लहूँ भव-सागर पार ।। मैं नर-नारी, सुखी, दुःखी अरु पर का मैं कर्त्ता भोक्ता । यह मिथ्या अभिप्राय वमन कर भेदज्ञान को भनूँ सदा।। राग-देष अरु पुण्य-पाप की ज्वाला शान्त करूँ जिनराज। वीतराग-विज्ञान पूर में हे प्रभु ! डूब रहा मैं आज ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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