Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
को कदमाए हिंदी सांतर - णिरंतरं
जयघवला सहिदे कसाय पाहुडे
पवेसगो को व के य अणुभागे । पोटी ६४
वा कदि वा समया
[ वेदगो ७
महाराज
६९. एसा विदियगाहा डिदि अनुभाग-पदेसुदीरणासु पडिबद्धा । तं जहा - 'को कमाए हिंदी पवेसगो' इच्वेदे पढमावयवेण द्विदिउदीरणा सूचिदा । 'को व के अभागे इच्चेदेचि विदियावयवेण अणुभागुदीरणा परूविदा । एत्थेव पदे सउदीरणा विििा चि दट्ठब्बा डिदि अभागाणं पदेसाविणा भावितादो । देसामायणाएण वस्सेह ग्रहणं काव्यव्वं । एवमेदेण गाहापुण्यद्वेण द्विदि अणुभागपदेसुदीरणाओ सामित्तमुद्देण पुच्चिदाओ । एदेव विदि-अणुभाग-पदेसुदयो तेसिं पवेसो च सूचिदो; देसामासयभावेणेदस्य पयट्टत्तादो। 'सांतरणिरंतरं वा० बोद्धव्या' ति उदयोदीरणाणं पडि-ट्टिदि - अणुभाग-पदेस विसेसिदाणं सांतरकालो निरंतर कालो वा केतिया समया त्ति एदेण पुच्छाचकेण णाणेगजीव संबंधिकालंतराणं परूवणा सूचिदा । एत्थतविदिय 'वा' -सदेश अगुत्तसमुद्वेए समुक्किच णादिसेमाणियोगद्दारा सं पण सूचिदा । तदो समुक्कित्तणादि जाव अप्पान हुए त्ति चउबीसमणि श्रीमद्दाराणं जहासंभव मुदयोदीरणाविसयाणं सूचणमेदेण कदभिदि धेतव्यं ।
कौन जीव किस स्थिति में और कौन जीव किस अनुभाग में कमका प्रवेश करानेवाला है तथा इनका सान्तर और निरन्तर काल और अन्तर कितने समय तक होता है यह जानने योग्य है ॥ ६० ॥
१६. यह दूसरी गाथा स्थितिउदीरणा, अनुभागउदीरणा और प्रदेशउदीररणाके विषय में प्रतिबद्ध हैं । यथा - ' —' को कमाए हिंदीए पवेसगी' इसप्रकार इस प्रथम अवयव के द्वारा स्थितिउदीरणा सूचित की गई है। 'को वा केय अभागे' इसप्रकार इस द्वितीय अवयव के द्वारा भी अनुभाग उदीरणा कही गई हैं। तथा इसी पदमें प्रदेशउदीरणा भी निर्दिष्ट की गई है ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि स्थिति और अनुभाग प्रदेशों के अविनाभावी होते हैं। अथवा देशासक न्यायसे उसका यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए। इसप्रकार इस गाथा के पूर्वार्धद्वारा स्थितिउदीरणा, अनुभागरण और प्रदेशउदीरणा के स्वामित्रकी प्रमुखता द्वारा पृच्छा की गई है। तथा इसी द्वारा स्थिति, अनुभाग उदय और प्रदेश उदय तथा उनका प्रवेश सूचित किया गया है, क्योंकि देशाभाव से यह वचन ( गाथाका पूर्वार्ध) प्रवृत हुआ है । 'सांतर - शिरंतरं वा० बोद्धा ।' अर्थात् प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशसे विशेषताको प्राप्त हुए उदय और उरा सान्तर और निरन्तर काल कितना है इसप्रकार इस पृच्छावाक्यके द्वारा नाना जीव और एक जीवसम्बन्धी काल और अन्तरप्ररूपणा सूचित की गई है। तथा यहाँ आये हुए अनुक्तका समुजय करनेवाले दूसरे 'वा' शब्द के द्वारा समुत्कीर्तना श्रादि शेप अनुयोगद्वारोकी प्ररूपणा सूचित की गई है। इसलिए यथासम्भव उदय और उदीरणको विषय करनेवाले समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक चौबीस अनुयोगद्वारोंका सूचन इस वचनके द्वारा किया गया है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए ।
1