Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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सुत्तगाहाणं विषयविभागपरूणा
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ति । संपहि खेादीरामस्थो बुच्चदे । तं जहा - खेतमिदि भणिदे णिरयादिखेत्तस्स गहणं कायन्वं । भव इदि भणिदे एइंदियादिभवस्स गहरणं कायव्वं । काल इदि भणिदे सिसिर-संतादिकालविसेसस्स गहरणं कायध्वं । वाल- जोच्त्रणयविरादिकालअणिदपज्जायस या । पोग्गल इदि भणिदे गंध- तंबूल वत्थामरण बिसेसत्थकंदयादिदव्यारामिट्टासिरूवाणं [ गहरणं ] कायच्वं । एवमेदे खेत्त भव-काल-पोग्गले पड़ा कम्माणमुदयोदीरणसरूवो फलविद्यागो होदि ति एसो एदस्स सुतस्स भावत्थो ।
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८. अधवा 'कदि आवलियं पवेसेदि' ति पडिउदीरणा 'कदि च पविसंति कस्स आवलियं इदि उदयोदोरणावदिरित्तो पयडिपवेसो त्ति विदियो अत्थाहियारो | एवं गाहा-पुन्यद्धे दो चैत्र अत्थाहियारा पडिवद्धा । पुणो 'खेत्त भव-काल-पोग्गल डिदिविवागादयखयो दु' ति एदम्मि गाहापच्चद्वे कम्मोदयो सकारयो पडिबद्धो ति वेत्तन्बो, चुहियसुतारे मुत्तकंठसुवरि तहा परूविस्समाणत्तादो। कथं पुरा कम्मोदयस्स एसो गाहावयवो वाचो चित्ते युच्चदे - खेत्त-भत्र काल-पोग्गले अस्सिऊण जो द्विदिक्खयलक्खणो कम्मस्स विचागो सो उदयो त्ति ववहिदसंबंध से सुतत्थवखारणादो, एसो गाहापमिद्धो कम्मोदयस्त बाचओ त्ति घेत्तव्यं ।
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:- आचार्य सुविधि क्षेत्रादिकका
क्रमसे उदीरणा और उदय क्षेत्र ऐसा कहने पर नरकादि क्षेत्रका ग्रहण करना चाहिए। भव ऐसा कहने पर एकेन्द्रियादिरूप भवका ग्रहण करना चाहिए | काल ऐसा कहने पर शिपिर और वसन्त आदि काल विशेषका ग्रहण करना चाहिए अथवा चालकाल, यौवनकाल और स्थविर आदि काल के आलम्बनसे उत्पन्न हुई प का ग्रहण करना चाहिए तथा पुल ऐसा कहने पर इष्टानिष्टरूप गन्ध, ताम्बूल, वस्त्र और आभरण विशेषरूप स्कन्ध श्रादि द्रव्योंका महण करना चाहिए। इसप्रकार इन क्षेत्र, भव, काल और पुलोंका आलम्बन लेकर कमका उदय और उदीरणारूप फलविपाक होता है यह इस सूत्र का भावार्थ है ।
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८. अथवा 'कदि आवलियं पवेसेंदि' इस द्वारा प्रकृतिउदीरणा नामवाला पहला अर्था धिकार तथा 'कदि च पविसंति कस्स आवलियं' इस द्वारा उदय और उदीरणा के सिवा प्रकृतिप्रवेश नामत्राला यह दूसरा अधिकार कहा गया है। इसप्रकार गाथा पूर्वार्ध दो ही अर्था धिकार प्रतिबद्ध हैं। पुनः गाथा के 'खेत्त - सब-काल-मोग्गलादिविवागादयखयो दु' इस पश्चिमार्चमें कारण सहित कर्मोदय नामक अधिकार प्रतिबद्ध हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि चूर्खिसूत्रकार मुक्तकण्ठ होकर आगे इसीप्रकार कथन करनेवाले हैं।
शंका- यह गाथाका पश्चिमार्थ कर्मोदयका वाचक कैसे है ?
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समाधान क्षेत्र, भव, काल और पुलोंका आश्रय लेकर जो स्थितिक्ष्यलक्षण कर्मका विपाक होता है बहु उदय है इसप्रकार व्यवहित सम्बन्धवश सूत्र के अर्थ व्याख्यान करने से यह गाथाका पश्चिमार्थ कर्मोदयका वाचक है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए |
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