Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ५९ ]
सुत्तगाहाणं विषयविभाग परूवणा
गाहाओ गुणहराहरियमुहकमलविग्गियाओ अस्थि ति
भणिदं होइ । एदेख
'चत्तारि वेदगम्मि दु' इच्वेदस्स संबंधगाहावयवस्स परामरसो कओ ति दट्टब्बो | संपहि संधानसेाहानिया सुहाशांता सरूमावादमुव्हेण तदट्टविवरणं कुणमाणो
पुच्छावकमाह
ऋ तं जहा ।
४. सुगमं ।
कद आवलियं पवेसेइ कदि च पविस्संति कस्स आवलिये । खेत्त-भव-काल-पोग्गल - द्विदिविवागादयखयो दु ॥५९॥
५. एस पढमगाहा । एदीए पर्याडिउदीरणा पयडिउदयो तदुभयकारणदवादिपरूवणा च कया | संपहि एदिस्से गाहाए अवयवत्थविवरणं कस्साम । तं जहा - 'कदि आवलियं पवेसेदि' त्ति एदेण पढमावयवेण पयडिउदीरणा परूविदा, कदि पयडीओ उदयावलिन्नंतर पयोगविसेसेरण पवेसेदि ति सुत्तस्थावलंबणादों । सारा पथडिउदीरणा दुविहा- मूलपय डिउदीरणा च उत्तरपयाडेउदीरणा च । उत्तरपपडिउदीरणा दुबिहा- एगेगुत्तरपय डिउदीरणा पर्याडिद्वाणउदीरणा चेदि । एत्थ सेसाणं दसामासयभावेण पय डिडा उदीरणा चैव मुत्तकंठमेदेण सुत्तावयवेण पिडा । तदो पडिउदीरणा सव्धा चैव एदम्मि बीजपदे णिलीया त्ति दवं ।
आचार्य के मुख कमल से निकली हुई चार सूत्र गाथाएँ हैं यह उक्त कथनका ताल है। इस वचन द्वारा सम्बन्ध गाथाके 'चत्तारि वेदगम्मि' इस अवयववचनका परामर्श किया है. ऐसा जानना चाहिए | अब संख्याविशेषके द्वारा अवधारण को प्राप्त गाथाओंके स्वरूप के अनुवाद द्वारा उनके अर्थका विवरण करते हुए पृच्छावाक्यको फहते हैं
* यथा ।
१४. यह सूत्र सुगम है ।
कितनी प्रकृतियोंको उदयावलिमें प्रवेश कराता है और किस जीव कितनी प्रकृतियाँ उदयावलिमें प्रविष्ट होती हैं, क्योंकि क्षेत्र, भच, काल और पुद्गलको निमित्तकर कर्मोंका स्थितिविपाक और उदयचय होता है ।। ५९ ।।
१५. यह प्रथम गाथा है । इस द्वारा प्रकृति उदीरणा, प्रकृतिउदय और इन दोनों के कारणभूत द्रव्यादिका कथन किया गया है। अब इस गाथाके अवयवोंका अर्थविवरण करते हैं। यथा- 'दि श्रावलियं पवेसेद' इस प्रथम अवयव द्वारा प्रकृतिउदीरा कही गई है, क्योंकि कितनी प्रकृतियोंको उदद्यावलिके भीतर प्रयोग - विशेष के द्वारा प्रवेश करता है इस प्रकार यहाँ उक्त गाथासूत्रके अर्थका अवलम्बन लिया गया है। वह प्रकृतिउदीरणा दो प्रकार की है - मूलप्रकृतिउदीरणा और उत्तरप्रकृतिउदीरणा । उत्तरप्रकृतिउदीरणा दो प्रकार की हैएकै उत्तर प्रकृतिउदीरणा और प्रकृतिस्थान उदीरणा । यहाँ पर शेष उदीरणाओंके देशामकभाव से इस सूत्रावयव के द्वारा प्रकृतिस्थानउदीरणा ही मुक्तकण्ठ होकर निर्दिष्ट की गई है ।
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