Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ गत ता जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो वेदगे ति अणियोगहारे दोषिण अणियोगदाराणि । तं जहाउदयो च उदोरणा । ६ १. एदस्स सुत्तस्स अत्थो चुच्चदै । तं जहा—वेदगे ति अणियोगद्दार कसायपाहुडस्स पाहारसहमत्थाहियाराणं मज्झे छटुं । तस्येमाणि दोएिण अणियोगहाराणि भवति । काणि ताणि त्ति सिस्साहिप्पायमासंकिय उदयो च उदीरणा चेव तेसि गामणिद्देसो कत्रों । तत्थोदयो एणाम कम्मापं जहाकालजणिदो फलविवागो । कम्मोदयो उदयो त्ति भणिदं होइ । उदीरणा पुरण अपरिपत्त कालाणं चेव कम्माणमुवायविसेसेण परिपाचनं 'अपक्वपरिपाचनमुदीरणा' इति वचनात् । वुत्तं च कालेण उवाये पच्चंति जा, वाइफलाहाराज - तह कालेण तवेण य पच्चंति कयाई कम्माइं ।। १ ॥ इदि :: २. एवंविहउदयोदीरणाओ जत्थ परूविज्जंति ताणि वि अणियोगद्दाराणि तरणामधेयाणि | कधं पुण उदयोदीरणाणं वेदगववएसो १ ण, वेदिजमाणत्त सामएणावेक्खाए दोपहमेदेखि तन्त्रवएससिद्धीए विरोहाभावादो। ॐ तत्थ चत्तारि सुत्तगाहारो।। । ३. तम्मि वेदगसणिणदे महाहियारे उदयोदीरणवियप्पिदे चत्तारि सुत्त* वेदक इस अनुयोगद्वारके दो अनुयोगद्वार हैं । यथा-उदय और उदीरणा । ६१. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । यथा--जो यह कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारों में वेदक नामका छठा अनुयोगद्वार है उसमें ये दो अनुयोगद्वार हैं। कौन हैं इस प्रकार शिष्यके अभिप्रायके अनुरूप अाशंका करके उदय और उदीरणा इस प्रकार उनका नामनिर्देश किया। प्रकृत्तमें कर्मोंके यथाकान्त उत्पन्न हुए फलके विपराकका नाम उदय है। कर्मों के उदयका नाम उदय हे यह उक्त कथनका तात्पर्य है। परन्तु जिन कर्मोके उदयका काल प्राप्त नहीं हुआ उनका उपाय विशेषसे पचाना उदीरणा है, क्योंकि मपक्वका परिपाचन करना उदीरणा है पेसा वचन है। कहा भी है जिस प्रकार बनस्पतिके फल परिपाककालके द्वारा या उपायके द्वारा परिपाकको प्राप्त होते हैं उसी प्रकार किये गये कर्म परिपाककालके द्वारा या तपके द्वारा पचते हैं ।। . ।। ६२. इस प्रकार उदय और उदीरणाका जिन अनुयोगद्वारों में कथन किया जाता है वे अनुयोगद्वार भी उन्हीं नामत्राले होते हैं। शंका–उदय और उदीरणाकी वेदक संज्ञा कैसे है ? समाधान—नहीं, क्योंकि उदय और उदोरणा दोनों ही सामान्यसे वेद्यमान हैं इस अपेक्षा उन दोनोंकी उक्त संज्ञाके सिद्ध होनेमें कोई विरोध नहीं पाता । * वेदक नामके इस अनुयोगद्वारमें चार सूत्रगाथाएँ हैं। ३३, 3 (व र उ होर णा इन भे से गुरु वेदक संज्ञावाले इस महाधिकारमें गुणधर

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 407